किसान नेता राकेश टिकैत ने असदुद्दीन ओवैसी को भाजपा का चचाजान बताया। यूपी चुनाव में ओवैसी की भागीदारी से टिकैत चिंतित।

किसान नेता राकेश टिकैत ने असदुद्दीन ओवैसी को भाजपा का चचाजान बताया।
यूपी चुनाव में ओवैसी की भागीदारी से टिकैत चिंतित।
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15 सितंबर को किसान नेता राकेश टिकैत का एक बयान सामने आया है। इस बयान में टिकैत का कहना है एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी तो भाजपा के चचाजान है। ओवैसी यूपी चुनाव में इसलिए भाग ले रहे हैं ताकि भाजपा को फायदा हो सके। टिकैत का मानना है कि ओवैसी की भूमिका से किसान आंदोलन की एकता पर भी प्रतिकूल फर्क पड़ेगा। टिकैत के बयान से साफ जाहिर है कि वे ओवैसी की भागीदारी से चिंतित हैं। सब जानते हैं कि टिकैत अब खुल कर राजनीति कर रहे हैं और उनका मकसद यूपी के विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराना है। यही वजह है कि किसान आंदोलन को भी चुनाव प्रचार में उतार दिया है। सवाल उठता है कि यदि ओवैसी यूपी चुनाव में भाग ले रहे हैं तो टिकैत को क्या एतराज है। ओवैसी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर प्रतिकूल टिप्पणी करते हैं तब टिकैत को ऐतराज क्यों नहीं होता? जब चुनाव आयोग ने ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को राजनीतिक दल का दर्जा दे रखा है, तब ओवैसी की भागीदारी पर एतराज क्यों? सब जानते हैं कि ओवैसी का रवैया एक तरफा होता है। विगत दिनों जब ओवैसी ने अयोध्या का दौरा किया तो उनकी प्रचार सामग्री में अयोध्या को फैजाबाद बताया गया। लेकिन तब टिकैत ने कोई एतराज नहीं किया। ओवैसी की भागीदारी से भाजपा को कितना फायदा होगा, यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा, लेकिन ओवैसी ने तो पश्चिम बंगाल में भी अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। लेकिन भाजपा को फायदा नहीं मिल सका। 2017 के यूपी चुनाव में ओवैसी ने भाग नहीं लिया था। लेकिन फिर भी भाजपा की सरकार बनी। सवाल उठता है कि ओवैसी की भागीदारी से राकेश टिकैत इतने चिंतित क्यों हैं? अब तक तो टिकैत का कहना था कि वे किसानों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने किसान आंदोलन को भी राजनीति से दूर रखा था। लेकिन यूपी चुनाव ही आहट होते ही टिकैत राजनीति पर उतर आए हैं। यह माना कि टिकैत की भाजपा से नाराजगी है और वे हर हाल में यूपी में भाजपा को हराना चाहते हैं। अब किसान आंदोलन का उपयोग भी भाजपा के विरुद्ध हो रहा है। यही वजह है कि यूपी में होने वाली किसानों की सभाओं में टिकैत मंच से अल्ला हू अकबर का नारा लगाते हैं। लेकिन टिकैत को यह भी समझना चाहिए कि वे स्वयं विधानसभा का चुनाव तक हार चुके हैं। यदि तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन को पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह का समर्थन नहीं होता तो आज टिकैत किसानों के इतने बड़े नेता नहीं होते। आंदोलन को बनाए रखने में पंजाब के किसानों का बड़ा योगदान है। टिकैत को भाजपा के चचाजान की चिंता करने की बजाए किसानों की चिंता करनी चाहिए। यह सही है कि किसान आंदोलन को खड़ा करने में टिकैत का भी योगदान है। यदि टिकैत को राजनीति ही करनी है तो उन्हें किसान यूनियन से इस्तीफा देकर यूपी चुनाव में खुलकर भाग लेना चाहिए। टिकैत चाहे तो भारतीय किसान यूनियन के उम्मीदवार भी खड़े करके भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं।