भारत के द्वारा सीओपी-15 यूएनसीसीडी में विषयक्षेत्र संबंधी मुद्दों, प्रवासन, लैंगिक मुद्दों, रेत और धूल भरी आंधियों पर दिया गया वक्तव्य

भारत द्वारा कोत दिव्वार में आज यूनाइटेड नेशंस कनवेंशन टू कॉम्बेट डेजर्टीफिकेशन (यूएनसीसीडी) के 15वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ दी पार्टीज (सीओपी-15) में विषयगत मुद्दों-  प्रवासन, लैंगिक और रेत और धूल भरी आंधियों पर दिया गया वक्तव्य निम्नलिखित है:

प्रवासन

मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखा (डीएलडीडी) प्रवासन के प्रमुख कारणों में से एक हैं । अन्य कारणों में जलवायु और पर्यावरणीय परिवर्तन शामिल हैं। लंबे समय तक कायम रह सकते वाली कृषि और इससे जुड़ी मूल्य श्रृंखलाओं को बढ़ावा देने से ग्रामीण आबादी के पलायन को रोकने के लिए आशाजनक अवसर मिलते हैं। प्रवासन के मुद्दे के हल के लिए निर्णय 22/सीओपी.14 में शहरी-ग्रामीण समुदायों को जोड़ने और  विकासात्मक कार्यों पर जोर दिया गया था। आईसीसीडी/सीओपी(15)/18 का निष्कर्ष है कि डीएलडीडी से प्रभावित ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि पुनरुद्धार गतिविधियों के माध्यम से आजीविका के अवसर सुनिश्चित किए जाने चाहिए। सतत विकास के लिए ग्रीन और ब्लू इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के साथ-साथ भूमि के एकीकृत उपयोग की योजना को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। खेती में और खेती से जुड़े क्षेत्रों में रोजगार प्रदान कर महिलाओं, ग्रामीण युवाओं, शरणार्थियों और आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों सहित कमजोर समूहों को लक्षित करने वाला एक मजबूत सहजीवी शहरी-ग्रामीण संबंध होना चाहिए। युवाओं के द्वारा प्रवास का सामना करने की सबसे अधिक संभावना है और वे लचीली और लंबी अवधि तक रहने वाली टिकाऊ खाद्य प्रणालियों की बहाली के प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण हैं। गृह मंत्रालय के तहत भारत के महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त का कार्यालय भारत में नामित प्राधिकरण है जो राष्ट्रीय जनगणना के दौरान संकलित आंकड़ों के आधार पर प्रवासन की जानकारी संकलित करता है जो कि आमतौर पर दस साल के अंतराल पर होती है

मानव प्रवास को सीमित  करना, भूमि संसाधन विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा कार्यान्वित किए जा रहे महत्वपूर्ण विकास कार्यक्रमों की स्पष्ट उपलब्धियों में से एक है। बदलाव लाने वाले ऐसे प्रत्येक कार्यक्रम में खर्च की गई राशि का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा श्रम घटक के लिए जाता है जो स्थानीय भूमिहीन, छोटे और सीमांत कृषक समुदाय के लोगों के लिए पर्याप्त रोजगार पैदा करता है। इन गतिविधियों में मशीनों का उपयोग न्यूनतम रखा जाता है ताकि रोजगार के अवसरों को बरकरार रखा जा सके जिससे परियोजना के क्षेत्रों से मानव प्रवास को कम किया जा सके। रोजगार उत्पन्न करने और पलायन को कम करने के लिए वाटरशेड कार्यक्रमों को मनरेगा और अन्य संबंधित योजनाओं के साथ लाना एक अतिरिक्त लाभ है।

वाटरशेड विकास घटक – प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना (डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई) ने 3.773 करोड़ से अधिक मानव-दिवस रोजगार सृजित किए हैं, जिसने विशेष रूप से महामारी की अवधि के दौरान योजना के क्षेत्रों में प्रवास को कम करने में भी योगदान दिया है। इसने रिवर्स माइग्रेशन को बढ़ावा देने के रूप में भी काम किया है, जब श्रम बल अपने मूल स्थानों पर वापस लौटे और वाटरशेड में काम कर रहे कार्यबल के साथ जुड़े।

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लैंगिक मुद्दे

लैंगिक समानता का सिद्धांत भारतीय संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्यों और नीति निर्देशक तत्व में निहित है। संविधान न केवल महिलाओं को समानता प्रदान करता है, बल्कि राज्य को महिलाओं के पक्ष में सकारात्मक झुकाव के लिए उपायों को अपनाने का अधिकार भी देता है। एक लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था के ढांचे के भीतर, हमारे कानूनों, विकास नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की उन्नति करना है। पांचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-78) से महिलाओं के मुद्दों के प्रति दृष्टिकोण में कल्याण से विकास की ओर एक उल्लेखनीय बदलाव आया है। हाल के वर्षों में, महिलाओं की स्थिति को निर्धारित करने में महिलाओं के सशक्तिकरण को केंद्रीय मुद्दे के रूप में मान्यता दी गई है। महिलाओं के अधिकारों और कानूनी हक की रक्षा के लिए 1990 में संसद के एक अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई थी। भारत के संविधान के 73वें और 74वें संशोधन (1993) ने महिलाओं के लिए पंचायतों और नगर पालिकाओं के स्थानीय निकायों में सीटों के आरक्षण का प्रावधान किया है, जिससे स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने में उनकी भागीदारी के लिए एक मजबूत नींव बनी है।

महिला सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय नीति, 2001 का लक्ष्य महिलाओं की उन्नति, विकास और उनका सशक्तिकरण करना है।

महिलाओं का सशक्तिकरण भारत में पीएमकेएसवाई का एक अभिन्न अंग है। वाटरशेड पहलों की योजना, कार्यान्वयन और रखरखाव में शामिल वाटरशेड समितियों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की सोच रखी गई है। वाटरशेड कार्यक्रमों को लागू करते हुए महिला आधारित सामुदायिक संगठन जैसे स्वयं सहायता समूह, उपयोगकर्ता समूह और किसान उत्पादक संगठन  बनाए और विकसित किए जाते हैं।

भारत में लैंगिक मुद्दों को दो मंत्रालयों महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा हल किया जाता है। लैंगिक समानता भी एक प्रमुख सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी 5) है। इस संदर्भ में, भारत ने लिंग संबंधी आंकड़ों में सुधार के लिए अपनी राष्ट्रीय कार्य योजना का प्रस्ताव रखा था।

एसडीजी-5 और लैंगिक मुद्दों को एक विषयगत क्षेत्र के रूप में मानने का मूल आधार सभी क्षेत्रों से लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में है। भारत सरकार ने “बेटी बचाओ, बेटी पढाओ” के माध्यम से इस मुद्दे को सबसे मूल स्तर पर हल करने के लिए कदम उठाए हैं। यह योजना एक बालिका को अपनी शिक्षा के संबंध में आत्मनिर्भर होने की अनुमति देती है। वैज्ञानिक नवाचार में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए, भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा जेंडर एडवांसमेंट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंस्टीट्यूशंस (जीएटीआई) कार्यक्रम को शुरू किया गया है।

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निर्णय 12/सीओपी.14 में भूमि क्षरण के बारे में महिलाओं में जागरूकता बढ़ाने पर बल दिया गया। इसके लिए, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) सूखाग्रस्त क्षेत्रों में रहने वाली महिला किसानों के साथ ज्ञान के आदान प्रदान के कार्यक्रम आयोजित करती रही है। हालांकि, जहां तक ​​एसडीजी-5 की बात है तो,श्रम के क्षेत्र में विशेष रूप से महिलाओं की भागीदारी में पर्याप्त प्रगति की गुंजाइश है।

रेतीली और धूल भरी आंधी

रेत और धूल भरी आंधी (संक्षेप में एसडीएस ) एशिया और अफ्रीका दोनों ही जगह शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में आम हैं और 17 एसडीजी में से 11 को प्रभावित करती हैं। एसडीएस पर्यावरण और जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। भारत इस बात की अत्यधिक सराहना करता है कि यूनाइटेड नेशंस इकोनॉमिक एंड सोशल कमीशन फॉर एशिया एंड द पैसेफिक (ईएससीएपी) एसडीएस से संबंधित मुद्दों के लिए क्षेत्रीय सहयोग का समर्थन कर रहा है।

निर्णय 25/सीओपी(14) ने एसडीएस से संबंधित जोखिमों के आकलन और समाधान के बारे में जानकारी और मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए यूएनसीसीडी से रेत और धूल भरी आंधियों के सार संग्रह को अंतिम रूप देने और प्रकाशित करने का आग्रह किया है।

भारत ये मानता है और पूरी तरह से समर्थन करता है कि यूएनसीसीडी सचिवालय एसडीएस का मुकाबला करने के लिए क्षेत्रीय योजना और नीति ढांचे में देशों की सहायता करता रहा है। राष्ट्रीय एसडीएस योजनाओं को तैयार करने के लिए चीन, कोरिया और रूस सहित मध्य और पूर्वोत्तर एशिया में कई पायलट परियोजनाएं लागू की गई हैं।

भारत में, एसडीएस की निगरानी का काम मुख्य रूप से भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) द्वारा किया जाता है।

आईसीसीडी/सीओपी(15)/16, पैरा 23 एसडीएस से संबंधित मुद्दों पर कार्य करते समय निगरानी, ​​जोखिम मूल्यांकन, प्रभाव मूल्यांकन और आपातकालीन प्रतिक्रिया उपायों में प्रमुख कमियों के बारे में बताता है।

अधिकांश देशों में मानवजनित एसडीएस स्रोत को कम करने के तरीकों का अभाव है और एसडीएस से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए आवश्यक आंकड़ों और जानकारी की कमी है।

एसडीएस टूलबॉक्स और निर्णय समर्थन प्रणाली के माध्यम से एसडीएस को हल करने के लिए पार्टियों की क्षमता निर्माण की परिकल्पना की गई थी। पहला एसडीएस टूलबॉक्स 2022 के मध्य तक उपलब्ध कराया जाएगा। आम तौर पर, ये टूलबॉक्स उपलब्ध जानकारी को वैज्ञानिक तरीके से एकीकृत करने के लिए पद्धति प्रदान करते हैं ताकि  समस्याओं को बड़े पैमाने पर हल किया जा सके।

भारत इंडीकेटर लेयर को एकीकृत करने के लिए बेहतर पैमाने पर जीआईएस लेयर को विकसित करने में उपयुक्त रिमोट सेंसिंग एजेंसी (जैसे एसएसी/एनआरएससी) को नामित कर सकता है जिससे आगे सुधार के लिए वास्तविक परिस्थितियों में इसकी प्रासंगिकता  का परीक्षण किया जा सके। यह मुद्दों को अधिक व्यावहारिक तरीके से हल करेगा।

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