प्रगत पदार्थ तथा प्रक्रम अनुसंधान संस्थान (एम्प्री), भोपाल ने रेड मड को एक्स-रे परिरक्षण टाइल्स में बदला

सीएसआईआर-प्रगत पदार्थ तथा प्रक्रम अनुसंधान संस्थान (एम्प्री) ने  एक निश्चित वजन प्रतिशत में उच्च जेड पदार्थ और जोड़ने वाले पदार्थ को मिलाकर सिरेमिक रूट के जरिए पर्यावरण अनुकूल और आर्थिक रूप से व्यवहार्य तरीके से रेड मड को एक्स-रे परिरक्षण टाइल्स में परिवर्तित किया है। 12 मिमी मोटी टाइल्स में 100 केवी पर 2.1 मिमी लेड के बराबर क्षीणता होती है। इसके अलावा, तैयार की गई टाइल में 34 न्यूटन प्रति वर्ग मिमी की फ्लेक्सुरल क्षमता और 3369 न्यूटन की विभंजन क्षमता है। डायग्नोस्टिक एक्स-रे, सीटी स्कैनर रूम, कैथ लैब, बोन मिनरल डेंसिटी, डेंटल एक्स रे आदि में जनता को विकिरण के खतरों से बचाने के लिए  जहरीली लेड शीट के बजाय इन टाइलों का उपयोग विकिरण परिरक्षण संरचनाओं के निर्माण के लिए किया जा सकता है।

आज पालमपुर में आयोजित निदेशकों के सम्मेलन के दौरान, डीजी, सीएसआईआर और सचिव डीएसआईआर, भारत सरकार डॉ. एन. कलायसल्वी ने विवरण पुस्तिका का पहला पत्र जारी किया है, जिसमें तकनीक के मूल सिद्धांत से शुरू होकर इसके प्रयोग, मेसर्स प्रिज़्म जॉनसन के द्वारा व्यावसायीकरण और प्रौद्योगिकी की शुरुआत तक विषय से जुड़ी सफल कहानी का पूरा विवरण दिया गया है।

“लेड-मुक्त एक्स-रे परिरक्षण टाइल्स” के निर्माण की पूरी जानकारी को सीएसआईआर, नई दिल्ली में 10/06/2019 को मेसर्स प्रिज्म जॉनसन लिमिटेड को हस्तांतरित किया था। सीएसआईआर-एम्प्री और मेसर्स प्रिज्म जॉनसन लिमिटेड ने इस पर मिलकर काम किया है और इस तकनीक को प्रयोगशाला से उद्योग स्तर तक उन्नत किया है, और 14/04/2022 को पायलट पैमाने पर जोड़ मुक्त एक्स-रे परिरक्षण टाइल्स (30x30x1.2 घन सेमी) बनाए गए। विकसित टाइलों का परीक्षण और अनुमोदन भारत के परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (एईआरबी) द्वारा किया गया है। उत्पाद का व्यवसायीकरण शुरू हो गया है और शुरुआत आईएनएस कट्टाबोम्मन, तमिलनाडु में की गई है।

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रेड मड बॉक्साइट से एल्यूमिना उत्पादन की बेयर प्रक्रिया में उत्पन्न अपशिष्ट है। इसे बॉक्साइट अवशेष के रूप में भी जाना जाता है। रेड मड को “उच्च मात्रा कम प्रभाव अपशिष्ट” के रूप में परिभाषित किया गया है। बेयर प्रक्रिया के माध्यम से बॉक्साइट अयस्क से एक टन एल्यूमिना के उत्पादन में लगभग 1 से 1.5 टन आरएम उत्पन्न हो रहा है। इसकी अत्यधिक क्षारीयता और अलग हुए भारी तत्व के कारण इसे विषैला माना जाता है। विश्व स्तर पर सालाना लगभग 17.5 करोड़ टन रेड मड  उत्पन्न होती है और मिट्टी के द्वारा घेरे गए विशेष रूप से डिजाइन किए गए तालाब में संग्रहीत होती है। इनमें भारत हर साल करीब 90 लाख टन रेड मड का उत्पादन कर रहा है। ये विशेष तालाब अक्सर टूट जाते हैं और मिट्टी, भूजल और हवा को प्रदूषित करते हैं और मनुष्यों और वन्यजीवों दोनों के लिए घातक हो जाते हैं।

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रेड मड कम उपयोग किए गए औद्योगिक कचरे में से एक है और एल्यूमिना उत्पादन में बढ़त होने और इसके इस्तेमाल के लिए पर्याप्त प्रौद्योगिकियां न होने की वजह से वर्षों से इसकी मात्रा बढ़ रही है। हालांकि वैज्ञानिक समुदाय ने रेड मड के 700 से अधिक अनुप्रयोगों का पेटेंट कराया है, लेकिन बहुत ऊंची लागत, लोगों के बीच कम स्वीकृति, पर्यावरणीय मुद्दों और सीमित बाजार के कारण इसमें से कुछ ही उद्योगों तक पहुंच पाए हैं। उल्लेखनीय है कि उद्योगों द्वारा सीमेंट, ईंटों, लौह अयस्क के स्रोत आदि के उत्पादन के लिए केवल 3-4 प्रतिशत रेड मड का उपयोग किया गया है, (यानी सीमेंट उत्पादन के लिए 10-15 लाख टन (एमटी), लौह उत्पादन के लिए 2-12 लाख टन, और निर्माण सामग्री के लिए 5 -10 लाख टन और पिगमेंट्स, उत्प्रेरक, सिरेमिक आदि बनाने के लिए 3 लाख टन)। रेड मड का लाभकारी उपयोग एक वैश्विक मुद्दा बनता जा रहा है। रेड मड में फेरिक ऑक्साइड का हिस्सा 30-55 प्रतिशत होता है, जो एक्स-और गामा किरणों जैसे उच्च-ऊर्जा आयनकारी विकिरणों को क्षीण करने के लिए उपयुक्त है।

 

 

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