Russia Ukraine crisis : रूस का यूक्रेन के न्यूक्लियर प्लांट पर भी कब्जा। प्रमुख बड़े शहर तबाह। आखिर अमेरिका, यूक्रेन का कितना नुकसान करवाएगा।

रूस का यूक्रेन के न्यूक्लियर प्लांट पर भी कब्जा। प्रमुख बड़े शहर तबाह। आखिर अमेरिका, यूक्रेन का कितना नुकसान करवाएगा।
रूस की निंदा नहीं करने का भारत का फैसला अब समझ आया।
सऊदी अरब के क्राउन मध्यस्थता करने को तैयार। पुतिन और जेलेंस्की से फोन पर बात भी की।
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रूस ने अपने पड़ोसी मुल्क यूक्रेन पर जो सैन्य कार्यवाही की है, उससे भारत में भी महंगाई बढ़ गई है। खाद्य वस्तुओं से लेकर उपभोग की अन्य सामग्रियों के दाम बढ़ने लगे हैं, यानी इस सैन्य कार्यवाही का असर दुनिया भर में हो रहा है। चार मार्च को रूस ने यूक्रेन के जपोरिजिया न्यूक्लियर पावर प्लांट पर भी कब्जा कर लिया है। रूस इसे बहुत बड़ी उपलब्धि मान रहा है, क्योंकि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की इस एटमी प्लांट को अपनी बड़ी ताकत मान रहे थे। इसके साथ ही रूस ने यूक्रेन के तमाम बड़े शहरों को मिसाइल हमलों से तबाह कर दिया है। सवाल उठता है कि आखिर अमेरिका, यूक्रेन का कितना नुकसान करवाएगा। अमेरिका के समर्थन की वजह से ही जेलेंस्की रूस को लगातार चुनौती दे रहे हैं। यूक्रेन ने अभी तक एक भी मिसाइल रूस पर दागने की हिम्मत नहीं दिखाई है। लेकिन इसके बावजूद भी जेलेंस्की सरेंडर करने को तैयार नहीं है।
इसके पीछे अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन की ही भूमिका बताई जा रही है। अमेरिका और नाटो देश यूक्रेन को हथियार तो दे रहे हैं, लेकिन मदद के लिए अपने सैनिक नहीं भेज रहे हैं। मौजूदा हालातों में यूक्रेन की स्थिति बद से बदतर हो गई है। लेकिन फिर भी पश्चिम का मीडिया ऐसा प्रदर्शित कर रहा है, जिसमें रूस को हारा हुआ देश बताया जा रहा है। कभी कुछ रूसी सैनिकों को बंधक बनाने के दृश्य दिखाए जाते हैं तो कभी रूसी टेंकों को जलने के वीडियो। रूस ने जब इतनी बड़ी कार्यवाही की है तो फिर यूक्रेन के अंदर थोड़ा नुकसान तो होगा ही। इसके लिए रूस के राष्ट्रपति पुतिन पहले से ही तैयार थे। 4 मार्च को जब रूस ने जपोरिजिया न्यूक्लियर प्लांट पर कब्जा किया तब पश्चिम के मीडिया में कहा गया कि रूस ने एटमी पर प्लांट पर हमला कर दिया है। परमाणु ऊर्जा के विशेषज्ञों का कहना है कि यदि एटमी प्लांट पर हमला किया जाता तो फिर यूक्रेन में ही नहीं बल्कि रूस में भी तबाही मच जाती। रूस ने अपनी रणनीति के तहत यूक्रेन के एटमी प्लांट पर कब्जा कर लिया है। एक तरह से रूस ने यूक्रेन की कमर तोड़ दी है। 4 मार्च को रूस की सैन्य कार्यवाही का 9वां दिन रहा। इसमें यूक्रेन को अभी तक भी कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। यूक्रेन के लाखों नागरिक देश छोड़ कर सीमावर्ती देशों में चले गए हैं। अमेरिका और पश्चिम देशों ने रूस पर जो आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, उनकी वजह से ही दुनिया भर में खाद्य वस्तुओं और अन्य उपभोक्ता सामग्रियों के मूल्य बढ़ रहे है। जो देश ज्यादा आयात करते हैं उन्हें भारी नुकसान होने लगा है। उत्तर प्रदेश के अंतिम चरण के मतदान को देखते हुए भारत ने पेट्रोल और डीजल के दाम अभी नहीं बढ़ाए जा रहे। जानकारों की मानें तो 7 मार्च को अंतिम चरण के मतदान के बाद ही पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ जाएंगे। 4 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक बैरल कच्चे तेल की बिक्री 133 डॉलर में हुई। इससे तेल कीमतों का अंदाजा लगाया जा सकता है।
मतलब अब समझ आया:
यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई के विरोध में संयुक्त राष्ट्र परिषद की तीन बैठकों में रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया गया। लेकिन इस निंदा प्रस्ताव का तीनों बार भारत ने समर्थन नहीं किया। मतदान के समय भारत में अनुपस्थिति दर्ज करवाई। कुछ लोग भारत के इस रवैये की आलोचना करते देखे गए। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बात का आभास था कि यूक्रेन में भारत के 20 हजार छात्र फंसे हुए हैं, छात्रों को सुरक्षित निकालने में रूस की मदद जरूरी है। इसे सूझबूझ वाला निर्णय ही कहा जाएगा कि युद्धग्रस्त क्षेत्रों से भी भारतीय छात्रों को सुरक्षित निकाला जा रहा है। मौजूदा समय में अधिकांश छात्र छात्राएं यूक्रेन के सीमावर्ती देशों में पहुंच गए हैं। अब कुछ छात्रों को पहले रूस की जमीन पर लाया जाएगा। स्वाभाविक है कि रूस भारतीय छात्रों को अपनी जमीन पर पैर तभी रखने देगा जब दोनों देशों के बीच संबंध अच्छे हों।
रूस के सैनिकों ने पहले यूक्रेन में भारतीय छात्रों को सुरक्षित स्पेस दिया और अब रूस के ही सैनिक भारतीय छात्रों को रूस की जमीन पर ले जा रहे हैं। जो लोग आलोचना कर रहे थे वे अब बताएं कि यदि रूस के साथ संबंध अच्छे नहीं होते तो क्या भारतीय छात्रों को रूस की जमीन से सुरक्षित लाया जा सकता था? आलोचकों के अब यह समझ में आ जाना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र परिषद की बैठकों में रूस के विरुद्ध रखे गए निंदा प्रस्ताव का समर्थन भारत ने क्यों नहीं किया। भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली प्राथमिकता अपने छात्र छात्राओं को सुरक्षित लाना रहा। भारत की इस कार्यवाही का पाकिस्तान का मीडिया भी सराहना कर रहा है। जहां पाकिस्तान सरकार ने यूक्रेन में फंसे अपने विद्यार्थियों को ऊपर वाले के भरोसे छोड़ दिया है, वहीं भारत ने अपने एक एक छात्र को यूक्रेन से सुरक्षित निकाला है। जो छात्र शेष रह गए हैं उन्हें रूस की जमीन से लाया जा रहा है। इसके लिए वायुसेना के विमान रूस पहुंच गए हैं। जब सभी छात्र सुरक्षित आ जाएंगे तब हो सकता है कि भारत की नीति में कोई बदलाव आए।
क्राउन प्रिंस मध्यस्थता को तैयार:
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थता करने को तैयार हो गए हैं। क्राउन प्रिंस ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से फोन पर बात भी की है। जानकारों का मानना है कि यदि क्राउन प्रिंस की मध्यस्थता स्वीकार की जाती है तो रूस की सैन्य कार्यवाही बंद हो सकती है। क्राउन प्रिंस का दोनों देशों पर खासा प्रभाव है।