एसजीवीपी गुरुकुल अहमदाबाद, गुजरात में आयोजित भाववंदना पर्व के अवसर पर पीएम मोदी के संदेश का हिन्दी रूपान्तरण

जय स्वामीनारायण!

पूज्य संतगण

सभी सत्संग भाइयों और बहनों,

आज भाववंदना के पावन पर्व को मैं देख रहा हूँ। गुरुदेव शास्त्री जी और उनकी एक साधना थी, तपस्या थी, समाज के लिए समर्पण था, जिसकी सुन्दरता से रचना कर के श्री धर्मजीवन गाथा स्वरूप में एक प्रेरक ग्रंथ पूज्य माधवप्रिय दासजी महाराज ने दिया है। 

मेरे लिए एक आनंद का विषय होता कि आप सब के बीच रहकर इस कार्यक्रम का आनंद लेता, लेकिन समय मर्यादा की वजह से यह मोह भी गंवाना पड़ता है। वैसे भी पूज्यनीय शास्त्री जी ने कर्तव्य करना सिखाया है, इसलिए मुझे भी यह करना पड़ेगा। 

लेकिन इस कार्य के लिए जिन्होंने मेहनत की, खास तौर पर पूज्यनीय माधवप्रियदास जी ने इसके लिए मेहनत की, उसके लिये मैं उन्हें अभिनंदन देता हूँ और सभी सत्संगियों की ओर से आभार प्रकट करता हूँ। 

सामान्य रुप से हमारे देश में बहुत कुछ सुंदर होता है, लेकिन वह शब्दबद्ध नहीं होता है। स्मृति में रहता है, पीढ़ियों में सबको कहते रहते हैं। लेकिन वह सब शब्दबद्ध हो और वह साहित्य के रुप में हमारे सामने हो, जब नवजीवन एक प्रकार से जन्म लेता है, इसलिए लगता है की हमारे बीच ही, शास्त्रीजी महाराज है, हम पढ़े तो तब लगे की देखो ये शास्त्री महाराज नें हमें कहा था, चलो हम अब ऐसे करेंगे। नहीं नहीं ये नहीं कर सकते , क्योंकि शास्त्रीजी महाराज ने मना किया है। क्योंकि इसमें ऐसी छोटी-छोटी अनेक बातें है। खास तौर पर सत्संग की बातें। और एक निर्लेप जीवन, जो समाज के लिए लगातार चिंता किया करे, चिंतन किया करे और समाज को प्रेरणा दे और जिसमें तपस्या की एक प्राणशक्ति का अनुभव हो। जिसमें ज्ञान का एक अविरत प्रवाह का अनुभव हम कर सकते हैं। उसका आनंद ले सकें। एक प्रकार से ये जीवन साधना, एक शब्द साधना हमारे सामने साहित्य रुप से एक अनमोल पुष्प के रूप में हमारे हाथ में दी गई  है। हमारा काम है की यह शास्त्रीजी महाराज के जीवन को हमारी सभी पीढ़ियों, समग्र परिवार उसे जाने, समझे, हम सब को पता है कि  शास्त्रीजी महाराज के उपदेशो में दो बातें बार-बार दिखने को मिलती हैं। जिसे हम जीवन मंत्र कह सकते हैं। एक बात वे हमेशा कहते थे कि जो भी हम करें, वह सर्वजन हिताय होना चाहिए।

और दूसरी बात वो यह कहते थे कि सद्विद्या प्रवर्तनाय। यह सर्वजन हित की बात करें, इसी से तो मैं कहता हूँ कि सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास। शास्त्रीजी ने जो कहे थे वही ये शब्द हैं। जिसमें सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की कल्पना चरितार्थ होती है। और ये भी हकीकत है कि हमारे राष्ट्र में सदियों से ज्ञान, उपासना, विद्या, महामूल मंत्र रहा है, हमारे सभी ऋषिओं जो किसी न किसी गुरुकुल परंपरा से जुड़े थे, हर एक ऋषि की गुरु परंपरा एक प्रकार से पारंपरिक विश्वविद्यालय थी। 

जिस में समाज के सर्व वर्ग के लोग, सर्वजन हिताय,जहां राजा की संतान भी वहां हो, सामान्य मानवी के परिजन भी वहां हो और सब साथ मिल कर सद्विद्या प्राप्त करते थे। हमारे यहां स्वामिनारायण परंपरा में जो गुरुकुल परंपरा है, यह गुरुकुल परंपरा हमारे भव्य भूतकाल और उज्ज्वल भविष्य  को जोड़ने वाली कड़ी है। समाज के सामान्य व्यक्ति को धार्मिक प्रेरणा, सांस्कृतिक प्रेरणा, संस्कारिक प्रेरणा,  जो उन्हें गुरुकुल में मिलती  है। गुरुकुल ने ऐसे रत्न दिए हैं, वे आज दुनिया में फैले हैं। शास्त्रीजी महाराज की यह दृष्टि , दिव्यदृष्टि जिससे दुनिया के कोई भी देश में जाए और भारतीय समुदाय को मिले तो एक दो तो ऐसे लोग मिलेंगे जो यह कहेंगे कि मैं तो गरीब परिवार से आया था। और गुरुकुल में बड़ा हुआ, गुरुकुल ने जो पढ़ाया और जहां हूँ, वहां काम कर रहा हूँ। 

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कहने का मतलब यह है कि इसमें उपदेश नहीं है, आदेश नहीं है, शास्त्रीजी के जीवन में एक अविरत साधना, तपस्या है। उसी के परिणाम से इतने समय बाद भी शास्त्रीजी महाराज हमारे बीच मौजूद हैं। शरीर से मौजूद हैं, आत्मिक स्वरुप से मौजूद हैं, और जब इस शब्द समूह और साहित्य के बीच अक्षरों से तब हमें शास्त्रीजी महाराज के वचन हमें याद आएंगे।

कर्तव्य की प्रेरणा देंगे, मेरा तो आपसे बहुत निकट नाता है। एसजीवीपी में आना जाना रहा है, एमएलए हमारे जो पुराने थे, तब यहां उनके अभ्यास वर्ग में भी आ चुका हूँ, क्योंकि मुझे पता था कि यह ऐसी पवित्र जगह है जहां पर वायब्रेशन का अनुभव होता है। मुझे तो आधुनिकता भी पसंद है, मैंने देखा है कि हमारे गुरुकुल में बहुत आधुनिकता आई है। मुझे आनंद होता है, जब एसजी रोड पर जा रहे हैं, लाईट जल रही हो, बच्चे क्रिकेट, वॉलीबॉल खेलते, सत्संग चलता है, मीटिंग्स, और प्रवृतियां चलती हैं और ये सब मूल शास्त्रीजी महाराज ने प्रेरणा दी, परंपरा दी, उसमें हर एक पीढ़ी ने समयानुकुल परिवर्तन किए, जड़ता नहीं रखी, बदलाव को अपनाया, ना ना यह तो नहीं कर सकते, ऐसा नहीं, स्वामीनारायन की विशेषता ही यही है हर एक बात का प्रेक्टिकल रास्ता निकाले।

हमने रास्ता निकाला, और उसमें सुंदर काम हुआ, सब को पता है कि इतना बड़ा सुंदर कार्य हो, इतना बड़ा सत्संगी परिवार हो, और जब मैं आपके बीच आया था। तो आप को पता है कि जब आया हूँ तो मैं खाली हाथ जाता नहीं हूँ।  आज भी रुबरु नहीं आया, लेकिन मैं कुछ तो मागूंगा, माधवप्रियदासजी, बालस्वामी समर्थन जरूर करेंगे, अब मैं कहूँ जब रुबरु आया हूँ तो जोर से कहता लेकिन दूर से धीरे से कहूँगा कि हमारे गुरुकुल से जितने लोग भी निकले हैं, उनके सभी परिवारों, अभी के विद्यार्थी तक सब उन सब को सामूहिक शक्ति से आजादी का अमृत महोत्सव, आजादी के 75 साल हमारे संतो ने भी आजादी की जंग में माहौल  बनाने में योगदान दिया ही था। खुद भगवान स्वामिनारायण के उपदेश में समाज सेवा थी, ये सब आजादी के जंग की प्रेरणा थी। आजादी के 75 वर्ष के बाद आपकी संस्था द्वारा गुरुकुल , सत्संगी, उनके परिवार द्वारा अभी तक पढ़े  सभी विद्यार्थियों से कुछ बातों का आग्रह करता हूँ, आज दुनिया की स्थिति देख रहे है तो नहीं लगता कि हर एक के लिए नई-नई मुश्किल, कोरोना की वजह, यूक्रेन -रशिया का जो चल रहा है उसमें यह हमें अनुभव हुआ कि  आज की दुनिया में कब क्या हो। उसका हम पर क्या प्रभाव होगा, उसका अनुमान लगाना मुश्किल है, और दुनिया आज छोटी हो गई है कि जिस पर प्रभाव पड़े बिना वह नहीं रह सकती। 

उसका एक उपाय है आत्मनिर्भरता, हमे हमारे पांव पर, हमारी आवश्यकता के लिए हमारी ताकत पर खड़े रहना होगा, तभी देश खड़ा रहेगा। आत्मनिर्भर भारत अभियान को शास्त्रीजी महाराज से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ा सकते है। एक बात बार-बार करता हुं कि वोकल फॉर लोकल, मेरा एक काम करना, हमारे सभी गुरुकुलों को विद्यार्थी, परिजनों को बोलना कि वे कागज पेन्सिल लेकर बैठें और टेबल, सुबह 6 से दूसरे दिन 6 बजे तक कितनी ऐसी विदेशी चीज़ें हैं जो हमारे घर में मौजूद हैं, हमारे देश में मौजूद हैं और जो भारत में मिलती हैं और हमें पता नहीं है कि जो कंघी या जो दीपक है, वो विदेशी है। 

हमें ये पता नहीं कि जो पटाखें जला रहे हैं, वह भी विदेशी हैं। खयाल ही नहीं, एक बार लिस्ट बनाएँगे तो चौंक जाएंगे। मैं क्या इतनी अपेक्षा न रखूँ कि हमारे गुरुकुल के साथ जुड़े किसी भी सत्संगियों के घर में ऐसी चीज हो, उसमें भारत की मिट्टी की सुगंध हो। ऐसी हर एक चीज जिसमें भारत के कोई मानवी का पसीना हो, जो हिन्दुस्तान की धरती पर बनी हो, ऐसी चीजें हम क्यूँ न यूज करें। वोकल फॉर लोकल का मतलबल यह नहीं कि दिवाली में दीपक यहां से लें, हमारी जरुरत की सभी चीज हमारे यहां से लें, तो कितने लोगों को रोजगार मिलेगा, आत्मनिर्भर होने की गति कितनी तेज होगी?

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देश कितना मजबूत बनेगा, इस काम के लिए आपकी मदद की जरूरत है, दूसरा सिंगल यूज़ प्लास्टिक। स्वच्छता अभियान, हमारे गुरुकुल में सिर्फ हमारा कैंपस स्वच्छ रखें, मंदिर स्वच्छ रखें ऐसा नहीं, हम सप्ताह में एक बार या महीने में एक बार, समूह में निकलें और निश्चित करें कि किसी एरिये के किसी गांव में जाकर दो घंटे सफाई करके आएंगे। आपके पास किसी चीज़ की कमी नहीं है, वाहन है सब है, कभी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पर जाने का तय करें और किसलिए वहां जाएंगे? घूमने के लिए नहीं, वहां जाकर सफाई करने के लिए। चलो तय करें कि इस बार अंबाजी जाएंगे। अंबाजी जा कर सफाई करें। हमारे शहर के अंदर बहुत स्टैच्यू रखें हैं। बाबा आंबेडकर, लाल बहादुर शास्त्री, भगतसिंह का स्टैच्यू होगा, तो हमें ऐसा न हो कि इसकी सफाई करने का जिम्मा हमारा रहेगा। स्वच्छता के अनेक रुप होते हैं। क्यों हमारा प्रसाद भी प्लास्टिक थेली में दें, हमारे घर में प्लास्टिक क्यों हो, सत्संगी परिवार हो तो प्लास्टिक नहीं ही होना चाहिए।

ये एक ऐसी बात है, क्योंकि गुरुकुल में लगभग  सभी बच्चे किसान परिवार के ग्रामीण बैकग्राउन्ड से हैं, माधवप्रियदास जी हो या अन्य संत हो उनका पूर्वाश्रम किसान परिवार से जुड़ा है। हमारे गुजरात के गवर्नर आचार्य देवव्रत प्राकृतिक खेती के लिए अभियान चला रहे हैं। धरती हमारी माता है, उस माता को उनकी सेवा के लिए हमारी ज़िम्मेदारी है की नहीं।  शास्त्रीजी महाराज ने ये सब कहा ही है, तो धरती माता को जहर दे देकर उन्हें कितने दिनों तक हम प्रताड़ित करते रहेंगे।

धरती माता को इन सब केमिकल के बोझ से मुक्ति दिलाएं, आपके यहां तो गीर के गायों की गौशाला भी है। और प्राकृतिक खेती की जो पद्धति है, वह सब गुरुकुल में सिखाई गई है। गुरुकुल में से सप्ताह में गांव जाए, गांव-गांव जाकर यह अभियान  हरेक किसान को सिखाएँ, फर्टिलाइजर, केमिकल, दवाओं की जरूरत नहीं।  प्राकृतिक खेती, मैं मानता हूँ कि गुजरात और देश की बड़ी सेवा होगी, और शास्त्रीजी महाराज को सही श्रद्धांजलि होगी, यह ग्रंथ मानों उग निकलेगा। आज जब मैं आपके बीच आया हूँ तो स्वाभाविक रुप से मैं मन से आग्रह करता हूँ, और माधवप्रियदास जी महाराज से तो मैं अधिकार से कहता हूँ, ऐसी मेरी आदत ही हो गई है ऐसा कहूँ तो गलत नहीं है। आदत के अनुसार आज भी हक से मांग रहा हूँ  हमारे गुरुकुल, सत्संगियों, परिजन के लोग आजादी के अमृत महोत्सव को नई रीत से, नए तरीके से मनाएँ। 

और सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय, जो आज शास्त्री जी महाराज का संकल्प है उसको करें और फिर एक बार मैं जो रुबरु नहीं आ सका, इसके लिए मैं क्षमा मांग रहा हूं और सब को भाववंदना पर्व की शुभकामनाएं, सभी को धन्यवाद। 

जय श्री स्वामिनारायण!

 

डिस्क्लेमर: यह प्रधानमंत्री के संदेश का भावानुवाद है, मूल भाषण गुजराती भाषा में हैं। 

 

DS/ST/SD