केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में डीओपीटी, सिविल सेवकों की संस्थागत क्षमता निर्माण का समन्वय कर रहा है और इस उद्देश्य के लिए क्षमता निर्माण आयोग (सीबीसी), प्रशासनिक सुधार विभाग (डीएआरपीजी), एलबीएसएनएए मसूरी, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) और आईएसटीएम के साथ सक्रिय भागीदारी में एक एकीकृत दृष्टिकोण को अपनाया जा रहा है

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) सिविल सेवकों के संस्थागत क्षमता निर्माण के काम का समन्वय कर रहा है और इस उद्देश्य के लिए क्षमता निर्माण आयोग (सीबीसी), प्रशासनिक सुधार विभाग (डीएआरपीजी), एलबीएसएनएए मसूरी, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) और आईएसटीएम के साथ सक्रिय भागीदारी में एक एकीकृत दृष्टिकोण को अपनाया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के पिछले 8 वर्षों ने भारत में शासन के सिद्धांतों को बदल दिया है।

मिशन कर्मयोगी पर तीसरे विचार-मंथन सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि क्षमता निर्माण के तीन महत्वपूर्ण स्तंभ हैं – (1) राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को लागू करना, (2) नागरिक-केंद्रितता, और ये कि (3) नई व उभरती प्रौद्योगिकियों के साथ किस प्रकार और कितनी तेजी से एडेप्ट किया जाए। हालांकि, उन्होंने खासतौर पर कहा कि एक आदर्श लोक प्रशासन को प्रतिस्पर्धी, कुशल, लागत प्रभावी और सुशासन प्रदान करने के प्रति जवाबदेह होना चाहिए।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि मिशन कर्मयोगी सरकार को सहयोग, समन्वय, शेयरिंग और एक्शन के लिए प्रस्ताव देगा जो कि क्षमता निर्माण आयोग का आधार है। उन्होंने कहा कि तेजी से बदलते तकनीकी परिदृश्य के मुताबिक सिविल सेवकों के उपयुक्त प्रशिक्षण के लिए 60 मंत्रालयों, 93 विभागों और 2600 संगठनों की उपस्थिति से पर्याप्त मांग पैदा होने की संभावना है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने संतोष जताया कि आजादी के 75 साल बाद पहली बार भारत के पास अपना खुद का क्षमता निर्माण ढांचा है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि भारत 73 राष्ट्रमंडल देशों के सिविल सेवा ढांचे में मदद और इज़ाफा करेगा, जिन्होंने ब्रिटिश सिविल सेवा को विरासत में पाया था। मंत्री महोदय ने कहा, वक्त के साथ साथ ग्लोबल साउथ, ग्लोबल नॉर्थ के साथ अपनी बेस्ट गवर्नेंस प्रैक्टिस साझा करेगा।

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘न्यू इंडिया’ के लक्ष्य को पूरा करने और इसकी आकांक्षाओं पर खरा उतरने के लिए शासन में “रूल” के बजाय “रोल” की ओर शिफ्ट होने की अनिवार्य आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सामान्यवादियों का युग खत्म हो गया है और अब ये प्रशासन के लिए कहीं अधिक प्रासंगिक है क्योंकि अब हम सुपर-स्पेशलाइजेशन के युग में प्रवेश करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि, ‘उद्देश्य के लिए फिट’ और ‘भविष्य के लिए फिट’ सिविल सेवा के लिए एक सक्षमता संचालित क्षमता निर्माण दृष्टिकोण की जरूरत है जो अपनी भूमिकाओं के निर्वहन के लिए महत्वपूर्ण दक्षताओं को प्रदान करने पर केंद्रित हो और यही मिशन कर्मयोगी का मुख्य लक्ष्य है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत का क्षमता निर्माण आयोग इस साल ‘एनुअल हेल्थ ऑफ सिविल सर्विसेज़ रिपोर्ट’ (एएचसीएसआर) प्रकाशित करेगा, जो इस पर गहराई से निगाह डालेगी कि भारतीय सिविल सेवा का प्रदर्शन कैसा है और मिशन कर्मयोगी किस प्रकार सिविल सेवा में क्षमता निर्माण को प्रभावित कर रहा है। उन्होंने कहा कि ‘सुशासन’ या ‘गुड गवर्नेंस’ की अवधारणा भारत के लिए नई नहीं है और ये देश के प्राचीन साहित्य में भी अच्छी तरह से समाहित है। इसे लोगों की सेवा करने और प्रशासन में संकट और चुनौतियों पर काबू पाने की आदर्श स्थिति प्राप्त करने के लिए एक व्यापक मार्ग के रूप में देखा गया है। उन्होंने कहा कि हमारे प्राचीन साहित्य में सुशासन की नींव धर्म (सत्यता, न्याय) पर आधारित है। जो ‘धर्म’ का पालन करता है, वो मूल्यों के वर्तमान भौतिकवादी भंडार से तुरंत अलग हो जाता है। एक सिविल सेवक के लिए धर्म के मार्ग का अनुसरण करना और अच्छे कर्म के साथ उसका समर्थन करना, उसे प्रशासनिक उत्कृष्टता की ओर ले जाएगा। भारत में लोक प्रशासन पर आरंभिक कार्यों को विभिन्न पवित्र ग्रंथों जैसे वेदों, बौद्ध साहित्य और जैन विहित कृतियों में जगह मिलती है।

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डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि मौजूदा सरकारें पारंपरिक, ऐतिहासिक ज्ञान और हालिया प्रशासनिक सुधार के प्रयासों का इस्तेमाल शासन को ज्यादा बेहतर बनाने और ‘मैक्सिमम गवर्नेंस, मिनिमम गवर्नमेंट’ के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कर सकती हैं। मंत्री महोदय ने उम्मीद जताई कि मिशन कर्मयोगी इसकी आपूर्ति को निरंतर बेहतर करने और बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण सहायक सिद्ध होगा, और प्रधानमंत्री द्वारा तय किए 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को वक्त के साथ हासिल करने में मदद कर सकेगा। उन्होंने कहा कि, इस मिशन की बुनियाद दरअसल इस मान्यता में निहित है कि एक नागरिक-केंद्रित सिविल सेवा जो अपने रोल को लेकर सही रवैये, कार्यात्मक विशेषज्ञता और डोमेन के ज्ञान से सशक्त है, उसके नतीजतन ही ‘ईज़ ऑफ लिविंग’ और ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ में भी सुधार होगा। उन्होंने कहा कि, लगातार बदलती जनसांख्यिकी, डिजिटल पैठ और बढ़ती सामाजिक व राजनीतिक जागरूकता के चलते सिविल सेवकों को यूं सशक्त किए जाने की जरूरत है कि वे ज्यादा गतिशील और पेशेवर बन सकें।

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