Rajasthan : जब यूपी में उर्दू और दिल्ली में पंजाबी व उर्दू को द्वितीय भाषा का सरकारी दर्जा मिल सकता है तो राजस्थान में राजस्थानी भाषा को क्यों नहीं?

Rajasthan : जब यूपी में उर्दू और दिल्ली में पंजाबी व उर्दू को द्वितीय भाषा का सरकारी दर्जा मिल सकता है तो राजस्थान में राजस्थानी भाषा को क्यों नहीं?
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कर सकते हैं एक सकारात्मक पहल।
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उत्तर प्रदेश और दिल्ली में हिन्दी को राजभाषा घोषित कर रखा है, लेकिन इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में उर्दू और दिल्ली में पंजाबी व उर्दू को द्वितीय राजभाषा भाषा घोषित किया हुआ है। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकार के शिक्षा संस्थानों में कक्षा एक से दस तक के विद्यार्थी हिन्दी के साथ साथ उर्दू व पंजाबी में भी पढ़ाई कर सकते हैं। इन दोनों राज्यों की प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न पत्र भी संबंधित भाषा में ही उपलब्ध करवाए जाते हैं। अपनी मातृभाषा में परीक्षा देने से युवाओं को अपनी योग्यता प्रदर्शित करने का पूरा अवसर मिलता है, लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि 8 करोड़ की आबादी वाले राजस्थान में अभी तक भी राजस्थानी भाषा को द्वितीय भाषा घोषित नहीं किया गया है।
23 अगस्त 2013 को विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कर केंद्र सरकार से मांग की गई कि राजस्थानी भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल किया जाए, लेकिन यह मांग तभी पूरी होगी, जब राजस्थान की सरकार राजस्थानी को यूपी और दिल्ली की तरह द्वितीय भाषा का दर्जा दे। अफसोसनाक बात यह है कि कांग्रेस और भाजपा की सरकारें राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर केंद्र से मांग तो करते हैं, लेकिन अपने अपने शासन में राजस्थानी को द्वितीय भाषा घोषित नहीं करते।
असल में 1956 में राजस्थान को जब पूर्ण राज्य का दर्जा मिला तो हिन्दी भाषा को राजभाषा घोषित कर दिया, जबकि तब प्रदेश की लोक संस्कृति को देखते हुए राजस्थानी भाषा का उल्लेख किया जाना चाहिए था। केंद्र की 8वीं अनुसूची में किसी भाषा को शामिल करने के लिए जो मापदंड बनाए गए हैं उनमें जरूरी है कि संबंधित भाषा को राजभाषा घोषित किया जाए तथा कक्षा एक से दस तक में संबंधित भाषा में पढ़ाई का प्रावधान हो। इच्छुक विद्यार्थियों को परीक्षा में प्रश्न पत्र भी संबंधित भाषा में ही उपलब्ध हो। यह तभी संभव होगा, जब राज्य सरकार राजस्थानी को राजस्थान की द्वितीय भाषा घोषित करे। सरकार भाजपा की हो या कांग्रेस की। जब भी राजस्थानी भाषा का मुद्दा जोर पकड़ता है तो मामले को केंद्र सरकार के पाले में डाल दिया जाता है।
हर सरकार अपनी जिम्मेदारी से बचती है, यदि राजस्थानी भाषा को वाकई केंद्र की 8वीं अनुसूची में शामिल करवाना है तो मौजूदा अशोक गहलोत की सरकार को राजस्थानी भाषा को द्वितीय भाषा का दर्जा देना होगा। सवाल यह भी है कि जब गुजरात में गुजराती, महाराष्ट्र में मराठी और बंगाल में बंगाली भाषा को राजभाषा का दर्जा मिला हुआ है तो फिर राजस्थान में राजस्थानी भाषा के साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है। सरकार को चाहिए कि राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के माध्यम से राजस्थानी भाषा के पाठ्यक्रम तैयार करवाए जाए। असल में राजस्थान की अफसरशाही यह नहीं चाहती है कि संघ लोक सेवा आयोग और राजस्थान लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में राजस्थानी भाषा के प्रश्न पत्र भी तैयार हो। जबकि संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में विद्यार्थियों को गुजराती, मराठी, बंगाली आदि भाषाओं में भी प्रश्न पत्र उपलब्ध होते हैं। राजस्थानी मोट्यार परिषद के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. एसएस जोलावास इन दिनों राजस्थानी भाषा को राज्य की द्वितीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए प्रदेशभर में अभियान चला रहे हैं। जोलावास के प्रयासों से ही अभी तक 150 विधायकों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिख दिया है। इन विधायकों में सरकार के मंत्री और कांग्रेस के विधायक भी शामिल है।
Rajasthan : जब यूपी में उर्दू और दिल्ली में पंजाबी व उर्दू को द्वितीय भाषा का सरकारी दर्जा मिल सकता है तो राजस्थान में राजस्थानी भाषा को क्यों नहीं?
जोलावास का मानना है कि 25 अगस्त 2003 को विधानसभा में सर्वसम्मति से जो प्रस्ताव पास किया, उसका महत्व तभी है जब राजस्थान की सरकार राजस्थानी को द्वितीय भाषा का दर्जा दे। राजस्थानी भाषा को लेकर चलाए जा रहे अभियान के बारे में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9783730979 व 9414737972 पर डॉ. जोलावास से ली जा सकती है।