जिस संसद को चलाने के लिए प्रति घंटा ढाई करोड़ रुपए खर्च होते हैं आखिर वह संसद चल क्यों नहीं रही है।

जिस संसद को चलाने के लिए प्रति घंटा ढाई करोड़ रुपए खर्च होते हैं आखिर वह संसद चल क्यों नहीं रही है।

विपक्षी दलों के गठबंधन में लोकसभा की सीटों का तालमेल कैसे होगा।

आखिर मोदी के खिलाफ चुप क्यों हैं अरविंद केजरीवाल।
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अगले वर्ष मई में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले संसद का मौजूदा शीतलाकीन सत्र अंतिम है। यानी संसद का अगला सत्र नई सरकार के गठन के बाद होगा। सरकार के पांच वर्ष के कार्यकाल में संसद के अंतिम सत्र को महत्वपूर्ण माना जाता है। देश भर से चुनकर आए सांसद एक दूसरे को दोबारा से जीतने की शुभकामनाएं भी देते हैं। लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में संसद का अंतिम सत्र हंगामे के कारण नहीं चल पा रहा है। देश के संसदीय इतिहास में यह पहला अवसर रहा होगा, जब 18 दिसंबर को लोकसभा के 33 और राज्यसभा के 47 सांसदों को शीतकालीन सत्र से निलंबित कर दिया गया। यानी एक ही दिन में 78 सांसदों को संसद से बाहर कर दिया गया। संसद को चलाने पर प्रति घंटा ढाई करोड़ रुपए खर्च होता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि रोजाना कितनी राशि खर्च हो रही है। सांसदों की सुविधाओं के लिए 900 करोड़ रुपए की लागत से नया संसद भवन भी बनाया गया। एक और संसद में सभी सांसदों को अच्छी से अच्छी सुविधा दी जा रही है तो दूसरे ये सांसद संसद में जनहित के मुद्दों को उठाने में विफल साबित हो रहे हैं। सरकार और विपक्षी दलों के बीच मौजूदा टकराव 13 दिसंबर की घटना को लेकर है। संसद में जिस तरह दो युवकों ने घुसकर हंगामा किया उसको लेकर विपक्षी दल केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बयान की मांग कर रहे हैं। जबकि केंद्रीय गृहमंत्री शाह का कहना है कि संसद की सुरक्षा की जिम्मेदारी लोकसभा अध्यक्ष की है, इसलिए अध्यक्ष ही बयान देंगे। जबकि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का कहना है कि हादसे के लिए जांच कमेटी का गठन किया गया है। जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद ही जवाब दिया जाएगा। लेकिन विपक्ष फिर भी अपनी मांग पर अड़ा हुआ है और शीतकालीन सत्र को चलाने नहीं दिया जा रहा। सत्तारूढ़ दल और विपक्ष के अपने अपने तर्क हैं। लेकिन इसका खामियाजा देश की जनता को उठाना पड़ रहा है। जनता सांसदों को चुनकर इसलिए भेजती हैं ताकि उनकी समस्याओं का समाधान हो सके। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि सांसद बनने के बाद संसद में राजनीति होती है। हर सांसद अपनी-अपनी पार्टी की विचारधारा के अनुसार संसद में आचरण करता है। संसद में हंगामे के कारण कई बार महत्वपूर्ण विधेयकों पर बहस भी नहीं हो पाती। विपक्ष का उद्देश्य सरकार की छवि खराब करना होता है तो सरकार का प्रयास होता है कि जो विधेयक रखे गए हैं वे हंगामे में भी स्वीकृत हो जाए। शीतकालीन सत्र से पहले मानसूत्र सत्र का भी ऐसा ही हाल हुआ था।

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कैसे होगा सीटों का तालमेल:
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर 19 दिसंबर को दिल्ली में विपक्ष के इंडिया गठबंधन की बैठक हो रही है। इस बैठक में लोकसभा चुनाव में सीटों के तालमेल पर विचार विमर्श होगा। इंडिया गठबंधन का प्रयास है कि मई में होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार के सामने विपक्ष का सिर्फ एक उम्मीदवार खड़ा हो ताकि नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से रोका जाए। विपक्ष के अधिकांश नेता चाहते हैं कि मोदी अगली बार पीएम नहीं बने। इसके लिए अनेक विपक्षी दलों ने आपसी मतभेदों को भुलाकर एक साथ बैठने का निर्णय भी लिया है। हालांकि 2019 में भी विपक्षी दलों ने ऐसा प्रयास किया था, लेकिन सफलता नहीं मिली। कुछ राज्यों में गठबंधन हुआ भी लेकिन फिर भी भाजपा की जीत हुई। 19 दिसंबर की बैठक में आने से पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी पार्टी टीएमसी कांग्रेस से समझौता करने को तैयार है। लेकिन कांग्रेस को यह ध्यान रखना होगा कि पश्चिम बंगाल में उनके सिर्फ दो लोकसभा सांसद हैं। ममता बनर्जी के इस बयान का अर्थ निकाला जाए तो कांग्रेस पश्चिम बंगाल में सिर्फ दो लोकसभा सीटों की हकदार है। इसी प्रकार आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पंजाब और चंडीगढ़ की सीट को मिलाकर लोकसभा की 11 सीट होती हैं। पंजाब में हमारी पार्टी की सरकार ने हर घर में कुछ न कुछ सुविधा उपलब्ध करवाई है। ऐसे में कांग्रेस और अन्य दलों को सभी 11 सीटों पर हमारी पार्टी के उम्मीदवारों को जिताने में मदद करनी चाहिए। केजरीवाल के बयान से भी स्पष्ट है कि वे पंजाब में एक भी सीट कांग्रेस को नहीं देना चाहते हैं। उत्तर प्रदेश में तो कांग्रेस की स्थिति बहुत ही दयनीय है। श्रीमती सोनिया गांधी अकेली हैं जो यूपी से सांसद हैं। विधानसभा में भी कांग्रेस के सदस्यों की संख्या में मुश्किल से पांच हैं। ऐसे में समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि एक दो सीटों को छोड़ कर कांग्रेस का कोई वजूद नहीं है। क्षेत्रीय दलों के नेताओं के इन बयानों को देखते हुए कांग्रेस के लिए सीटों का तालमेल करना मुश्किल हो रहा है। हाल ही में तीन हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस की हार ने उसे और कमजोर किया है। मौजूदा समय में कांग्रेस की तीन राज्यों में सरकार है जबकि केजरीवाल की दो राज्यों में सरकार है।

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केजरीवाल की चुप्पी:
पिछले कुछ दिनों से केजरीवाल पीएम मोदी के खिलाफ कोई बयान बाजी नहीं कर रहे हैं। असल में दिल्ली के बहुचर्चित शराब घोटाले में केजरीवाल के गिरफ्तार होने की आशंका भी उत्पन्न हो गई है। जांच एजेंसियों ने केजरीवाल को 21 दिसंबर को बयान देने के लिए बुलाया है। शराब घोटाले में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह पहले ही जेल में बंद हैं। लाख कोशिश के बाद भी दोनों को अदालतों से जमानत नहीं मिल पा रही है। ऐसे में माना जा रहा है घोटाले में केजरीवाल भी गिरफ्तार हो सकते हैं। जांच एजेंसियों के पास इस बात के सबूत हैं कि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार ने शराब नीति में बदलाव किया जिसकी वजह से शराब विक्रेता कंपनियों को भारी फायदा हुआ। इसकी एवज में केजरीवाल सरकार में शामिल कुछ लोगों ने करोड़ों रुपया प्राप्त किया। हालांकि शराब नीति के किसी भी दस्तावेज पर मुख्यमंत्री की हैसियत से केजरीवाल के हस्ताक्षर नहीं है। लेकिन जांच एजेंसियों ने भ्रष्टाचार की जो कडिय़ां जोड़ी हैं वह केजरीवाल तक जाती हैं। चूंकि केजरीवाल को स्वयं की गिरफ्तारी की आशंका है इसलिए इन दिनों केजरीवाल ने पीएम मोदी के खिलाफ चुप्पी साध रखी है।

Report By S.P.MITTAL