3 हजार KM दूर से आई 1 करोड़ की अफीम स्टेपनी से ट्यूब निकाल मणिपुर से छिपा कर ला रहे थे 41 किलो अफीम जालोर और बाड़मेर में होनी थी सप्लाई,
जोधपुर एनसीबी की टीम ने घेराबंदी कर दो को पकड़ा जोधपुर, जोधपुर एनसीबी (नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो) ने जालोर जिले के भीनमाल में बड़ी कार्रवाई करते हुए ट्रक की स्टेपनी से 1 करोड़ रुपए की अफीम पकड़ी है। यह अफीम का दूध मणिपुर से लाया जा रहा था, जो जालोर व बाड़मेर में सप्लाई होना था। इस मामले में टीम ने जालोर व बाड़मेर जिले के दो आरोपियों को गिरफ्तार कर 41 किलोग्राम अफीम का दूध बरामद किया है। जोधपुर एनसीबी के संयुक्त निदेशक उगमदान रतनू ने बताया कि कुछ दिन पहले इनपुट मिला था कि 3 हजार किलोमीटर दूर मणिपुर से अफीम की खेप मारवाड़ बेल्ट में सप्लाई होने आ रही है। इस पर टीम इसकी तलाश में जुट गई। एनसीबी टीम को इनपुट मिला कि ट्रक की स्टेपनी में अफीम का दूध शुक्रवार रात को जालोर बॉर्डर क्रॉस करेगा। इस पर टीम ने सिरोही से ही ट्रक का पीछा करना शुरू कर दिया था और जैसे ही आरोपी ट्रक लेकर भीनमाल थाने के आगे से पहुंचे, घेराबंदी कर उन्हें पकड़ लिया। एनसीबी ने बाड़मेर निवासी अशोक विश्नोई व जालोर जिला निवासी लालाराम विश्नोई के पास से 41 किलोग्राम अफीम का दूध बरामद किया गया। इन दोनों को गिरफ्तार कर पूछताछ की जा रही है। इसके आधार पर पूरे नेटवर्क का पता लगाने का प्रयास किया जा रहा है।
तीन हजार किलोमीटर से तस्करी
मणिपुर की जालोर से सड़क मार्ग से कुल दूरी 2,985 किलोमीटर है। मणिपुर से राजस्थान की तरफ से चलने वाली लंबी दूरी के ट्रकों में यह अफीम लाया जाता है। खासियत की बात यह है कि तीन हजार किलोमीटर की इस दूरी के बीच सैकड़ों पुलिस थाने निकलते हैं। इसके बावजूद तस्कर बड़ी चतुराई से इसे ट्रक के विभिन्न हिस्सों में छुपाकर ले आते हैं।
मारवाड़ में महंगा होने लगा तो मणिपुर से सप्लाई
मणिपुर का अफीम गुणवत्ता के मामले में सबसे बेहतरीन माना जाता है। वहीं मारवाड़ में अब अफीम महंगा होने लगा है। ऐसे में यहां के लोग मणिपुर से तस्करी कर यहां लाते हैं। इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्र व वहां की शुद्ध आबोहवा के कारण बेहतरीन अफीम उपजता है। ऐसे में इसकी मांग राजस्थान में बढ़ती जा रही है। मणिपुर के अफीम की गुणवत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक किलोग्राम दूध में मिलावट कर पंद्रह किलोग्राम अफीम तैयार की जाती है। जबकि नीमच-मंदसौर व चित्तौड़गढ़ क्षेत्र के एक किलोग्राम दूध से दस किलोग्राम अफीम तैयार कर तस्कर बाजार में बेचते हैं।
पहाड़ों में चोरी से होती है पैदावार
देश में अफीम की बुवाई के लिए केन्द्र सरकार की तरफ से लाइसेंस प्रदान किया जाता है। इसके बाद सारी उपज को सरकार खरीदती है। लेकिन तस्करी के जरिये होने वाली मोटी कमाई के कारण लोग चोरी से इसकी उपज लेते है। राजस्थान में चित्तौड़गढ़ व प्रतापगढ़ के अलावा मध्य प्रदेश के नीमच व मंदसौर क्षेत्र में इसकी व्यापक पैमाने पर खेती होती है। इसके अलावा झारखंड, जम्मू कश्मीर, पश्चिमी बंगाल व उत्तर पूर्व के कुछ राज्यों में इसकी खेती की जाती है। पूर्वोत्तर राज्यों के पहाड़ी इलाकों में सभी स्थान पर पुलिस पहुंच नहीं पाती है। ऐसे में मोटी कमाई के फेर में कई किसान इसकी खेती व्यापक पैमाने पर करने लगे हैं।
राजस्थान में हैं सबसे अधिक खपत
पूरे देश में अफीम की सबसे अधिक खपत राजस्थान और विशेषरूप से पश्चिमी राजस्थान में होती है। पश्चिमी राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्र में शादी ब्याह से लेकर मौत के बाद होने वाली बैठकों सहित सभी तरह के आयोजन अफीम की मनुहार के बगैर अधूर माने जाते है। ऐसे में अफीम की सबसे अधिक तस्करी इसी क्षेत्र में ही होती है।
नए रास्ते तलाश रहे तस्कर
पश्चिमी राजस्थान में अफीम अभी तक मुख्य रूप से चित्तौड़गढ़-मंदसौर-नीमच बेल्ट से ही आती रही है। इस रास्ते पर पुलिस व एनसीबी की सख्ती बढ़ गई. इसके बाद तस्करों ने नए रास्ते और नए स्थान तलाश करने शुरू किए। इसके बाद झारखंड, जम्मू कश्मीर व पश्चिमी बंगाल से भी कई बार यहां पहुंची खेप पकड़ी गई। अब तस्कर मणिपुर सहित उत्तर पूर्वी राज्यों तक पहुंच गए और वहां से अफीम खरीद कर ला रहे हैं।
एनसीबी के सामने बढ़ी चुनौती
रतनू ने स्वीकार किया कि तस्कर नित नए तरीके अपना रहे हैं। ऐसे में अफीम सहित अन्य मादक पदार्थों की तस्करी को रोकना काफी चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। तस्कर नए-नए रास्ते और नए-नए क्षेत्र तलाश कर वहां से नशा लेकर यहां पहुंच रहे हैं। एनसीबी ने इनके काफी नेटवर्क को तोड़ दिया है, लेकिन थोड़े दिन बाद नए तस्कर उभर कर सामने आ जाते हैं। गौरतलब है कि जोधपुर संभाग में इससे पूर्व भी मणिपुर से लाई अफीम बरामद की गई थी।