केंद्रीय वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने सीओपी 27, इजिप्ट में मैंग्रोव अलायंस ऑफ क्लाइमेट (एमएसी) के शुभारम्भ के अवसर पर संबोधित किया

मुख्य बातें :

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने मैंग्रोव अलायंस फॉर क्लाइमेट (एमएसी) के शुभारम्भ के अवसर पर अपने विचार रखे। यह कार्यक्रम शर्म-अल-शेख, इजिप्ट में हो रहे सीओपी27 से इतर आयोजित किया गया था।

इस कार्यक्रम में संबोधन देते हुए श्री भूपेंद्र यादव ने कहा:

“मैं संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण मंत्री माननीय मरियम बिन्त मोहम्मद अलमहेरी और इंडोनेशिया की वानिकी एवं पर्यावरण मंत्री सिती नूरबाया बकर को इस कार्यक्रम की मेजबानी के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं, जिससे प्रकृति मां के चमत्कारों में से एक मैंग्रोव के वैश्विक उद्देश्य पर काम करने के लिए दुनिया भर के देशों की एक ही जगह उपस्थिति संभव हुई है।”

मैंग्रोव दुनिया के सबसे अधिक उत्पादक इकोसिस्‍टम में से एक हैं। यह ज्वारीय जंगल कई जीवों के लिए एक नर्सरी ग्राउंड के रूप में काम करता है, तटीय क्षरण से सुरक्षा देता है, कार्बन को अलग करता है और लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करता है। इसके अलावा यह जीव जंतुओं के लिए आश्रय स्थल के रूप में काम करता है।

मैंग्रोव दुनिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र में फैले हुए हैं और 123 देशों में पाए जाते हैं।

मैंग्रोव उष्णकटिबंधीय में कार्बन के लिहाज से सबसे समृद्ध वनों में शामिल हैं। इनकी दुनिया के उष्णकटिबंधीय जंगलों में अनुक्रमित कार्बन में 3% हिस्सेदारी है।

मैंग्रोव कई उष्णकटिबंधीय तटीय क्षेत्रों का आर्थिक आधार हैं। नीली अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए, स्थानीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तटीय आवासों, विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय देशों के लिए मैंग्रोव का स्थायित्व सुनिश्चित करना अनिवार्य है।

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उल्लेखनीय अनुकूलित विशेषताओं के साथ, मैंग्रोव उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय देशों के प्राकृतिक सशस्त्र बल हैं। वे समुद्र के स्तर में वृद्धि जैसे जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों और चक्रवात एवं तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ते मामलों के खिलाफ लड़ने के लिए सबसे अच्छा विकल्प हैं।

प्रतिष्ठित प्रतिनिधियों,

भारत अतिरिक्त वन और वृक्षों के माध्यम से 2030 तक 2.5 से 3 अरब टन सीओ2 के अतिरिक्त कार्बन सिंक को तैयार करने के अपने एनडीसी के लिए प्रतिबद्ध है।

हम देखते हैं कि मैंग्रोव में वातावरण में बढ़ती जीएचजी सांद्रता को कम करने के लिए खासी क्षमताएं हैं। अध्ययनों से पता चला है कि मैंग्रोव वन भू-उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में चार से पांच गुना अधिक कार्बन उत्सर्जन को अवशोषित कर सकते हैं।

यह भी पता चला है कि मैंग्रोव समुद्र के अम्लीकरण के लिए बफर के रूप में कार्य कर सकते हैं और सूक्ष्म प्लास्टिक के लिए सिंक के रूप में कार्य कर सकते हैं।

विभिन्न देशों के लिए मैंग्रोव वनीकरण से नया कार्बन सिंक बनाना और मैंग्रोव वनों की कटाई से उत्सर्जन को कम करना अपने एनडीसी लक्ष्यों को पूरा करने और कार्बन तटस्थता हासिल करने के दो व्यवहार्य तरीके हैं।

मान्यवर,

भारत प्राकृतिक इकोसिस्‍टम के संरक्षण और बहाली के लिए प्रतिबद्ध है; और मैंग्रोव के संरक्षण और प्रबंधन की दिशा में उसकी मजबूत प्रतिबद्धता है।

दुनिया में मैंग्रोव के सबसे बड़े शेष बचे क्षेत्रों में से एक, सुंदरबन स्थलीय और समुद्री दोनों वातावरणों में जैव विविधता के एक असाधारण स्तर का समर्थन देता है। इसमें वनस्पतियों और पौधों की प्रजातियों की एक बड़ी रेंज से संबंधित आबादी; बंगाल टाइगर और एस्तुआरिन मगरमच्छ और भारतीय अजगर सहित दुर्लभ वन्यजीवों की विस्तृत रेंज शामिल है। भारत में अंडमान क्षेत्र; सुंदरबन क्षेत्र; और गुजरात क्षेत्र में मैंग्रोव में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।

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माननीयों, विशिष्ट प्रतिनिधियों और इस सीओपी के प्रतिभागियों

भारत ने लगभग पांच दशकों में मैंग्रोव बहाली की गतिविधियों में अपनी विशेषज्ञता का प्रदर्शन किया है और अपने पूर्वी एवं पश्चिमी दोनों तटों पर विभिन्न प्रकार की मैंग्रोव पारिस्थितिकी को बहाल किया है।

माननीयों, मैं प्रस्तावित जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सीमा पार सहयोग के साथ मैंग्रोव के संरक्षण के उद्देश्य से मैंग्रोव एलायंस फॉर क्लाइमेट (एमएसी) के शुभारंभ पर आपको बधाई देता हूं। हम यह भी महसूस करते हैं कि राष्ट्रीय आरईडीडी प्लस में मैंग्रोव को शामिल करना, वनों की कटाई से उत्सर्जन को कम करना और वन क्षरण कार्यक्रम वर्तमान समय की जरूरत है।

भारत मैंग्रोव बहाली में अपने व्यापक अनुभव, इकोसिस्‍टम मूल्यांकन और कार्बन अनुक्रम पर अपने अध्ययनों के कारण वैश्विक ज्ञान आधार में योगदान कर सकता है। साथ ही मैंग्रोव संरक्षण और बहाली के लिए अत्याधुनिक समाधानों के संबंध में अन्य देशों के साथ जुड़कर और उपयुक्त वित्तीय साधनों का सृजन करके भी लाभान्वित हो सकता है।

आइए, हम उष्णकटिबंधीय तटों की सबसे कीमती संपत्तियों में से एक की रक्षा के लिए, जलवायु परिवर्तन के परिणामों के लिए स्थिरता और अनुकूलन की दिशा में एकजुट हो जाएं।”

अन्य संदर्भ :

भारत में मैंग्रोव के संरक्षण पर ज्यादा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस रिपोर्ट 2021 यहां पर देख सकते हैं

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