भारतीय वैज्ञानिकों ने नैनोरॉड की लंबाई और छिद्रता को दुरुस्त करके कारगर तथा टिकाऊ सौर सेलों का विकास किया

भारतीय वैज्ञानिकों ने पेरोवस्काइट सौर सेल (पीएससी) आधारित टाइटेनियम डाई-ऑक्साइड (टीआईओ2) नैनोरॉड की स्थिरता और दक्षता बढ़ाने के लिये एक नई प्रक्रिया निकाली है। इस प्रक्रिया से ऐसी सौर सेलों का विकास करने में मदद मिलेगी, जिनकी सक्रिय परतों से स्थिर प्रकाश उत्पन्न होगा।

पेरोवस्काइट सौर सेल का व्यापार में बहुत आकर्षण है, क्योंकि इसकी दक्षता अपेक्षाकृत अधिक है और निर्माण लागत बहुत कम। बहरहाल, इसके बारे में अल्पकालीन और दीर्घकालीन चुनौतियां जरूर मौजूद हैं।

इंटरनेशनल एडवान्स्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मेटलर्जी एंड न्यू मटेरियल्स (एआरसीआई), भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) की एक स्वायत्तशासी संस्था है। डॉ. वी. गणपति के नेतृत्व में संस्था के वैज्ञानिकों ने पेरोवस्काइट सौर सेलों (पीएससी) आधारित टाइटेनियम डाई-ऑक्साइड (टीआईओ2) नैनोरॉड की दक्षता और स्थिरता बढ़ा दी है। इसके लिये वैज्ञानिकों ने टीआईओ2 नैनोरॉड की लंबाई तथा छिद्रता में बदलाव किये है। वैज्ञानिकों ने (टीआईओ2) नैनोरॉड की लंबाई और इलेक्ट्रोड की छिद्रता के बीच प्रसंस्कृत पीएससी सम्बंधी तालमेल बैठाकर यह काम अंजाम दिया है।

दल ने बताया कि इलेक्ट्रोड में जो अनगिनत छिद्र होते हैं, वे पेरोवस्काइट को छानने तथा उन्हें शुद्ध करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दो टीआईओ2 नैनोरॉडों के बीच एक छिद्र से दूसरे छिद्र के बीच का फासला फोटो-इलेक्ट्रोड छिद्रता से तय होता है। जैसे-जैसे नैनोराड की लंबाई बढ़ती जाती है, छिद्रता की भिन्नता में भी परिवर्तन आता जाता है।

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“इस काम में, ठोस फिल्म से नैनो-निर्मित फिल्म पर टीआईओ2 नैनोरॉड को उतारते वक्त उसकी लंबाई, छिद्रता और उसकी संरचना पर हमारा सटीक नियंत्रण था।”

वैज्ञानिक दल ने टीआईओ2 नैनोरॉड के ढांचे को नियंत्रित किया। यह कार्य टाइटेनियम घटकों के ठोस होने और उनके बढ़ने की प्रक्रिया में बदलाव लाकर किया गया। नैनोरॉड आधारित पीएससी का बिजली में बदलने की दक्षता को टीआईओ2 नैनोरॉड की लंबाई और छिद्रता की भिन्नता के जरिये बढ़ाया गया। टीआईओ2 नैनोरॉड के बीच-बीच में जो अंतराल होते हैं, उनसे पेरोवस्काइट को गहराई से छानने में मदद मिलती है। यह पेरोवस्काइट पर पतली-पतली परतें चढ़ाने के दौरान होता है, जो टीआईओ2 नैनोरॉड की सतह पर जम जाती हैं। टीआईओ2 नैनोरॉड फोटो इलेक्ट्रोड पर बड़े छिद्र होने के कारण एचटीएम के छोटे कणों को छानने के काम को भी बढ़ाया गया। इस पूरी प्रक्रिया को ‘जर्नल ऑफ एलॉयज एंड कंपाऊंड्स’ मं प्रकाशित किया गया है।

350एनएम टीआईओ2 नैनोरॉड के साथ तैयार पीएससी में एनपी-टीआईओ2 की अपेक्षाकृत बेहतर दक्षता होती है। एनपी-टीआईओ2 आधारित उपकरण की समान मोटाई एनपी-टीआईओ2 की अपेक्षाकृत कम फोटोकरंट महत्ता रखते हैं। यह 20एनएम टीआईओ2 कणों के सघन बंधन के कारण होता है, जिसमें पेरोवस्काइट ज्यादा नहीं समा पाते। टीआईओ2 नैनोरॉड की उच्च क्रिस्टिलता इलेक्ट्रॉन भेजने वाली परत (ईटीएल) में इलेक्ट्रॉन के प्रवाह को प्रतिबंधित नहीं करती।

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मौजूदा कार्य में उच्च दक्षता के अलावा, ईटीएल का क्रिस्टिलता ढांचा भी पीएससी की स्थिरता को बहुत प्रभावित करता है।

डॉ. वी. गणपति कहते हैं, “पेरोवस्काइट को सोखने वाले तत्त्व का अलग-थलग हो जाना पीएससी की दक्षता के कम हो जाने का बड़ा कारण है। पेरोवस्काइट की समान प्रकृति के कारण टीआईओ2 नैनोरॉड पीएससी की स्थिरता में बढ़ोतरी का कारण टाइटेनियम डाई-ऑक्साइड पर आयन की धीमी गति होती है, जो टीआईओ2-एनआर/एमएपीबीआई3 इंटरफेस से सम्बंधित है।”

 

रेखाचित्र 1 (ए) रेखीय चित्र टीआईओ2-एनआर बनाम नैनो-पार्टिकल में इलेक्ट्रॉन के पहुंचने का प्रतिनिधित्व करता है, (बी) टीआईओ2-एनआर और टीआईओ2-एनपी द्वारा निर्मित पीएससी उपकरणों की अंतर-वर्गीय एफई-एसईएम छवियां, (सी) दो भिन्न फोटोइलेक्ट्रोड्स सम्बंधी विद्युत-वोल्टेज परिधि, (डी) टीआईओ2-एनआर और टीआईओ2-एनपी आधारित पीएससी की अनुकूल परिस्थितियों (250 सेल्यिस, 40 ~ 60 % आरएच) में प्रगति

अधिक विवरण के लिये डॉ. वी. गणपति, वैज्ञानिक ([email protected]), पर संपर्क किया जा सकता है।

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