राष्ट्रीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय के तीव्र विकास के लिए भोपाल में दो-दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की गई

गुजरात के जनजातीय विकास विभाग की गुजरात विकास सहायता एजेंसी (डीएसएजी) और भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा मध्य प्रदेश के भोपाल में दो-दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला (7 और 8 अप्रैल, 2022) आयोजित की गई। आदिवासी इतिहास से जुड़े इतिहासकारों और शोधकर्ताओं, मानवविज्ञानी, फिल्म निर्माताओं, क्यूरेटर, कलाकारों और संग्रहालय के विकास से जुड़े विशेषज्ञ सहित पचास से अधिक विशेषज्ञों ने आदिवासी संग्रहालय स्थापित किए जा रहे विभिन्न राज्यों के आदिवासी शोध संस्थानों के निदेशकों और प्रतिनिधियों के साथ विस्तृत चर्चा की।

15 अगस्त, 2016 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले से अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में, राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में गुमनाम आदिवासी नायकों के योगदान को स्वीकार करने के लिए आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय स्थापित करने की घोषणा की थी। इसके बाद, जनजातीय कार्य मंत्रालय ने गुजरात, झारखंड, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, मणिपुर, मिजोरम और गोवा में स्थित दस आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों को मंजूरी दी है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जनजातीय गौरव दिवस पर 15 नवंबर, 2021 को झारखंड में भगवान बिरसा मुंडा आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय राष्ट्र को समर्पित किया था। नर्मदा जिले के गरुड़ेश्वर में स्थापित किया जा रहा संग्रहालय एक राष्ट्रीय संग्रहालय होगा, जहां 16 प्रमुख गैलरी पूरे भारत में आदिवासी स्वतंत्रता आंदोलनों को समर्पित होंगी। निर्माणाधीन संग्रहालय स्टैच्यू ऑफ यूनिटी से लगभग 6 किमी दूर है।

2017 के बाद से, 13 राष्ट्रीय स्तर की समिति की बैठकें हुई हैं, जिनसे इन संग्रहालयों के सिविल और संग्रह संबंधी पहलुओं पर सिफारिशें प्राप्त हुई हैं। राष्ट्रीय स्तर की समिति (एनएलसी) ने पिछली बार गरुड़ेश्वर में बैठक की थी, जहां जनजातीय कार्य मंत्रालय के सचिव और संस्कृति मंत्रालय, नई दिल्ली के सचिव और विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने राष्ट्रीय संग्रहालय के लिए सुझाव दिए थे। एनएलएस की सिफारिशों के अनुसरण में भोपाल में कार्यशाला का आयोजन किया गया।

 

 

जनजातीय कार्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव डॉ. नवलजीत कपूर ने दस स्वतंत्रता सेनानियों के संग्रहालयों का अवलोकन प्रस्तुत किया। उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि एनएलसी के सुझावों के अनुसार सभी आगामी आदिवासी संग्रहालयों के लिए एक लिखित एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) का मसौदा तैयार करके उसका मूल्यांकन किया जाना चाहिए और आदिवासी समुदायों के सहयोग से आदिवासी संस्कृति के साथ तालमेल कायम करते हुए एक प्रणाली विकसित होनी चाहिए। उन्होंने एनएलसी बैठकों की सिफारिश और दो-दिवसीय कार्यशाला के अपेक्षित परिणामों के आधार पर एजेंडा भी साझा किया।

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गुजरात के प्रधान सचिव श्री मुरली कृष्णा और मध्य प्रदेश की प्रधान सचिव सुश्री पल्लवी जैन ने गुजरात और मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में संग्रहालयों के विकास में अपने अनुभव साझा किए।

 

 

कार्यशाला में प्रत्येक आदिवासी आंदोलन की विषयवस्तु एवं कथानक के विकास से संबंधित प्रमुख मुद्दों पर चर्चा हुई। वास्तुशिल्प डिजाइन पूरी थीम/कहानी के अनुरूप होना चाहिए। प्रत्येक राज्य को जमीनी वास्तविकताओं, प्रामाणिकता और सामग्री के वास्तविक महत्व से परिचित कराने और तालमेल बिठाने, ज्ञान, संसाधनों और विशेषज्ञता का समुचित मिश्रण सुनिश्चित करने, अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने, प्रौद्योगिकी के उन्नयन और वास्तुकला के साथ कथानक पर ध्यान देने के साथ आवश्यक क्षेत्र के भूनिर्माण पर प्रत्येक राज्य के साथ खुली चर्चाएं आयोजित की गईं। विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ 5 क्षेत्रीय समितियों का गठन किया गया, जो परियोजना के क्यूरेटोरियल योजना और निष्पादन में तेजी लाने के लिए सामग्री विकास और खोज सह कलाकृतियों के चयन, कारीगरों और सामग्री की पहचान और अनुमोदन में मदद करेंगे। संग्रहालय के विभिन्न पहलुओं और सामग्री, अवधि और सिविल निर्माण के संबंध में विभिन्न दृष्टिकोणों के बारे में विशेषज्ञों के साथ गहन चर्चा हुई। विशेषज्ञों ने कई सुझाव दिए।

 

 

विभिन्न पृष्ठभूमि के कई विशेषज्ञ राष्ट्रीय मानव संग्रहालय (आरएमएस), भोपाल के साथ जुड़े हुए थे। प्रतिभागियों ने आरएमएस का भी दौरा किया, जिनके पूरे भारत में क्यूरेशनल कलाकारों के साथ संबंध हैं। आरएमएस के विशेषज्ञों ने इन संग्रहालयों के विकास में अपनी विशेषज्ञता और सेवाएं प्रदान करने की पेशकश की और यह सुझाव दिया कि आरएमएस के पास उपलब्ध विशेषज्ञता का समुचित इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

एनएलसी के विशेषज्ञ सलाहकार डॉ. कल्याण कुमार चक्रवर्ती ने एक डिजिटल संग्रह के निर्माण पर जोर दिया, जिसमें लगातार बदलते आख्यान, ऑफसाइट प्रदर्शन, जनजातीय समुदायों के प्रतिनिधियों की भागीदारी तथा संग्रहालय की स्थिरता एवं फिर से आदिवासी स्वरूप प्रदान करने से संबंधित विचार शामिल हैं।

यूनेस्को अध्यक्ष और संग्रहालयों के क्षेत्र में गहन अंतरराष्ट्रीय अनुभव वाले संग्रहालयों के विशेषज्ञ प्रो. अमरेश्वर गल्ला ने संग्रहालय के लिए क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने, एक राष्ट्रीय ढांचा स्थापित करने और संग्रहालय में कई मांगों और दृष्टिकोणों को शामिल करने का सुझाव दिया। उन्होंने परियोजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए आधारभूत नीतियों और संरचनाओं का प्रारूप तैयार करने पर भी जोर दिया।

पूर्व-एसीएस और वर्तमान में राज्य चुनाव आयुक्त श्री संजय प्रसाद ने किसी कथानक को चुनने में सावधानी बरतने का सुझाव दिया, क्योंकि अधिकांश आदिवासी दस्तावेज एक औपनिवेशिक परिप्रेक्ष्य को प्रतिध्वनित करते हैं।

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टीआरआई, मध्य प्रदेश के निदेशक श्री नीतिराज, टीआरआई, ओडिशा के निदेशक श्री ए.बी. ओटा, टीआरआई, झारखंड के निदेशक श्री रणेंद्र कुमार और टीआरआई, छत्तीसगढ़ की निदेशक सुश्री शमी आबिदी ने अपने राज्यों के संग्रहालयों के बारे में चर्चा की। चूंकि अधिकांश आदिवासी आंदोलन इन राज्यों में हुए हैं और उपलब्ध अधिकांश सामग्री या तो अंग्रेजों द्वारा लिखित या मौखिक इतिहास है, जो लोककथाओं और कहानियों पर आधारित है, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जनजातीय आंदोलनों से संबंधित सामग्री की सत्यता की जांच समुदाय के नेताओं और जनजातीय इतिहास पर काम करने वाले इतिहासकारों द्वारा की जानी चाहिए।

एक स्वतंत्र वास्तुकार और योजना पेशेवर सुश्री मीरादास ने संबंधित जनजातियों के सदस्यों को शामिल करके संग्रहालय में आदिवासी की मांग को शामिल करने का सुझाव दिया। काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी के प्राचीन इतिहास विभाग के डॉ. विनय कुमार, स्कूल ऑफ ह्यूमैनिटी, राष्ट्रीय रेल और परिवहन संस्थान, वडोदरा के श्री चंडी प्रसाद, आईजीआरएमएस के पूर्व निदेशक

डॉ. सरित चौधरी, डॉ. एसबी ओटा ने अपने अनुभव साझा किए तथा सामग्री विकास, खोज एवं कलाकारों व कलाकृतियों के चयन में संबंधित टीआरआई को विशेषज्ञ सलाह प्रदान करने की पेशकश की।

प्रो. सुभद्रा चन्ना, दिल्ली विश्वविद्यालय ने भी संग्रहालय में आदिवासी की मांगों को अग्रभूमि में रखने, एक कथा में कई लेखकों के दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने के साथ-साथ संग्रहालय के स्थान को जैविक एवं विकसित रखने पर जोर दिया। इसके अलावा, उन्होंने एक ‘पवित्र स्थान’ की अवधारणा और आगंतुकों के लिए जंगलों की गंध तथा आदिवासी भोजन एवं दीर्घाओं में आदिवासी गीतों के उपयोग जैसे अनेक प्रकार के एहसास को शामिल करने के बारे में चर्चा की।

मानवविज्ञानी, शिक्षाविद और आईजीआरएमएस के पूर्व निदेशक, उत्कल संस्कृति विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर के पूर्व कुलपति डॉ. के. के. मिश्र ने कथानक और सामुदायिक भागीदारी पर विशेष जोर देने का सुझाव दिया। उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतिनिधित्व समय और स्थान से संबंधित होना चाहिए। संग्रहालय में प्रदर्शित होने से पहले कहानी का विस्तृत अध्ययन करने की आवश्यकता है।

कार्यशाला के दौरान क्षेत्रीय कार्यशाला आयोजित करने का निर्णय लिया गया ताकि चर्चा के अनुरूप कार्यशालाओं से सीख और विभिन्न संग्रहालयों की प्रगति की निगरानी की जा सके।

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एमजी/ एएम/ एसकेएस