Rajasthan : लंपी स्किन डिजीज बनी मवेशियों की जान की दुश्मन।

Rajasthan : लंपी स्किन डिजीज बनी मवेशियों की जान की दुश्मन।

हाल ही में राजस्थान के कई जिलों में लंपी स्किन डिजीज से प्रभावित जानवरों की संख्या में अचानक से वृद्धि दर्ज की गई है। विशेषकर ग्रामीण इलाकों में समुचित उपचार की व्यवस्था नहीं हो पाने के कारण यह बीमारी बाकी दूसरे जिलों में भी धीरे-धीरे फैलती हुई अपना विकराल रूप ले रही है। लंपी स्किन डिजीज एक वायरस जनित रोग है जो कि पॉक्सवायरस परिवार के ही एक वायरस कैपरी पॉक्स वायरस से होती है तथा इस बीमारी के सर्वाधिक लक्षण गायों में दर्ज किए गए हैं। ओआईई के अनुसार इस बीमारी में संक्रमण से लक्षण आने में लगभग 28 दिन का समय लगता है साथ ही इस बीमारी की पशु में  संक्रमण दर 5 से 45 प्रतिशत एवम् मृत्यु दर 10 प्रतिशत से कम दर्ज़ की गई हैं।
यह बीमारी कैसे फैलती हैं।
सामान्यतः यह बीमारी स्वस्थ पशु के बीमार पशु के साथ संपर्क में आने से फैलती हैं। यह बीमारी मच्छरों और माखियों के काटने से भी फैलती हैं।यह बीमारी बीमार पशु की लार,आंसु,वीर्य एवम् दूध आधी से भी फैल सकती हैं।
बीमारी के लक्षण।
पशु के पूरे शरीर की त्वचा पर 2 से 5 सेंटीमीटर तक की गांठे बन जाती है तथा कुछ समय बाद ये फूट जाती हैं एवम् इनसे तरल पदार्थ बाहर निकलने लगता हैं। जो की दूसरे स्वस्थ पशुओं को भी संक्रमित कर सकता हैं। गांठे फूटने के बाद छालों में परिवर्तित हो जाती हैं। त्वचा पर बनने वाली गांठे इस बीमारी का महत्वपूर्ण लक्षण हैं। सतही लसिका ग्रंथियों में सूजन आ जाती हैं। पशु के शरीर का तापमान सामान्य रूप से बढ़ने लगता हैं। पशु थका हुआ महसूस करता है एवम् खाना पीना भी छोड़ देता हैं।बीमार पशु के आंख एवम् नाक से पानी निकलने लगता हैं।दूध उत्पादन में कमी आ जाती हैं। कभी- कभी इस बीमारी में पशु में लंगडापन भी देखा गया हैं। उपचार ना मिलने की स्थिति में पशु की मृत्यु भी हो सकती हैं।
रोकथाम एवम् उपचार।
बीमारी के लक्षण आने पर तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें एवम् पशु के उपचार की समुचित व्यवस्था करें।बीमार पशु को स्वस्थ पशुओं के संपर्क में ना आने दें अर्थात बीमार पशु को बाकी पशुओं से तुरंत अलग कर देना चाहिए। पशु की त्वचा पर उपस्थित गांठों पर एंटीसेप्टिक दवा का लेप लगाये। मृत पशु शरीर को दूर जगह पर ले जाकर गहरे गड्ढे में दफना दें। पशु बाड़े में गंदगी और नमी कम से कम रखें ताकि मच्छर और मक्खियों की संख्या को नियंत्रित किया जा सकें।यह बीमारी जूनोटिक नहीं हैं अर्थात यह पशुओं से इंसानों में नहीं फैलती हैं।