राजस्थान में लॉकडाउन लगे 22 दिन गुजर गए, लेकिन अभी तक भी असर नहीं हुआ है।

राजस्थान में लॉकडाउन लगे 22 दिन गुजर गए, लेकिन अभी तक भी असर नहीं हुआ है।
दूसरी लहर में पूरा परिवार संक्रमित हो रहा है। लगातार बढ़ रही है संक्रमित मरीजों की संख्या।
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राजस्थान देश के उन चुनिंदा राज्यों में शामिल है, जहां कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत में ही लॉकडाउन लगा दिया गया था। प्रदेश में 16 अप्रैल से ही लॉक डाउन लगा हुआ है, लेकिन 22 दिन गुजर जाने के बाद भी लॉकडाउन के सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आए हैं। 7 मई को ही प्रदेश में रिकॉर्ड 164 संक्रमित व्यक्तियों की मौत हुई है। इस सरकारी आंकड़े में संक्रमण के दौरान हार्ट अटैक से मरने वालों की संख्या शामिल नहीं है। जबकि सबसे ज्यादा मृत्यु हार्ट अटैक से ही हो रही है। यदि प्रदेश के श्मशान स्थलों पर संक्रमित मरीजों के अंतिम संस्कार की गिनती की जाए तो मृत्यु का आंकड़ा प्रतिदिन एक हजार को पार करेगा। राज्य सरकार ने 16 अप्रैल को जब लॉकडाउन लगाया था, तब प्रतिदिन 6 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हो रहे थे, लेकिन आज 22 दिन बाद संक्रमित मरीजों की संख्या 18 हजार के पार है। इससे जाहिर है कि अभी तक भी लॉकडाउन का असर शुरू नहीं हुआ है। सरकार ने 24 मई तक प्रदेशभर में संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर रखी है। एक गांव से दूसरे गांव जाने पर भी पाबंदी है। इतना सख्त लॉकडाउन लगाने के बाद भी संक्रमण की रफ्तार कम नहीं हो रही है। कोरोना की दूसरी लहर में यह बात सामने आई है कि पूरा परिवार ही संक्रमित हो रहा है। पहली लहर में परिवार का एक या दो सदस्य ही संक्रमित निकल रहा था, लेकिन अब तो छोटे बच्चे भी संक्रमित हो रहे हैं। जब पूरा परिवार संक्रमित हो रहा है, तब परिवार के सामने विकट स्थिति है। परिवार के एक या दो सदस्य अस्पताल में सांसों के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो घर में दूसरे सदस्य संक्रमित होकर आइसोलेट हैं। ऐसे घर की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। संक्रमण के कारण कोई रिश्तेदार भी घर पर नहीं आ रहा है। बहुत से लोग सेवा का दावा तो करते हैं, लेकिन जमीन पर ऐसी सेवा देखने को नहीं मिलती है। परिवार के संक्रमण की स्थिति का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनकी पत्नी सुनीता गहलोत भी संक्रमित होकर घर पर कैद हैं। कड़ी सुरक्षा और सुविधा में रहने के बाद सीएम दम्पत्ति संक्रमित हो गए। एक तरफ लॉकडाउन का कोई असर नहीं हो रहा तो दूसरी तरफ गंभीर संक्रमित मरीजों का अस्पतालों में समुचित इलाज नहीं हो पा रहा है। अजमेर के जेएलएन अस्पताल के कोविड सेंटर के बाहर रात दिन मरीजों की लाइन लगी रहती है। भर्ती होने के लिए संक्रमित व्यक्तियों को घंटों इंतजार करना पड़ता है। यह अस्पताल भी ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहा है। कई बार तो गंभीर मरीज की मृत्यु का इंतजार किया जाता है, क्योंकि अस्पताल के बाहर भर्ती होने के लिए कतार लगी होती है। सरकार चाहे कितने भी दावे कर ले, लेकिन सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी बरकरार है। हालात इतने खराब है कि अस्पताल में भर्ती होने के बाद मरीज के घर लौटने की उम्मीद बहुत कम होती है। यदि कोरोनाकाल में मृत्यु के आंकड़े सही आ जाएं तो भयावह स्थिति सामने आएगी।