Rajasthan : आखिर मुख्यमंत्री और मंत्रियों के सरकारी आवास नाथी का बाड़ा क्यों न हो?

आखिर मुख्यमंत्री और मंत्रियों के सरकारी आवास नाथी का बाड़ा क्यों न हो?
जनप्रतिनिधियों को राजस्थानी महिला नाथी की नेक दिली से सीख लेनी चाहिए।
================
3 फरवरी को भाजपा के युवा मोर्चे के कुछ कार्यकर्ताओं ने सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के जयपुर के सिविल लाइन स्थित सरकारी बंगले की दीवार पर नाथी का बाड़ा शब्द लिख दिया। हो सकता है कि डोटासरा ने इस पर नाराजगी जताई हो, इसलिए पुलिस कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने के लिए भाजपा के प्रदेश मुख्यालय पर पहुंच गई। यदि प्रतिपक्ष के उपनेता राजेंद्र सिंह राठौड़, पूर्व मंत्री अरुण चतुर्वेदी, राजेंद्र सिंह शेखावत जैसे नेता मौजूद नहीं होते तो पुलिस भाजपा कार्यालय में घुसकर कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लेेती। इस मुद्दे पर 3 फरवरी की रात को 8 बजे फर्स्ट इंडिया न्यूज़ चैनल पर एक लाइव डिबेट भी हुई। इस डिबेट में राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार के तौर पर मैं भी उपस्थित रहा, जबकि मेरे साथ भाजपा के प्रवक्ता मनीष पारीक और कांग्रेस के प्रवक्ता गिरीराज गर्ग ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। एंकर बृजेंद्र सोलंकी ने अपने तेज तर्रार तरीके से चैनल के पक्ष को रखा। सवाल उठता है कि किसी नेता के सरकारी बंगले की दीवार पर नाथी का बाड़ा शब्द लिखने पर इतना बवाल क्यों हो रहा है? ऐसा प्रतीत होता है कि सत्ता के नशे में डूबे नेता और सत्ता के इशारे पर कत्थक करने वाली पुलिस राजस्थान की उस नेक दिल महिला नाथी के बारे में नहीं जानते, जिनकी वजह से राजस्थान में नाथी का बाड़ा कहावत चर्चा में आई है। नाथी कोई अमीर महिला नहीं थी, लेकिन वह अपनी सामर्थ्य के अनुसार घर आए जरूरतमंद की मदद करती थी। चूंकि घर के दरवाजे हमेशा खुले रहते थे, इसलिए बिना रोक टोक के कोई भी व्यक्ति नाथी के घर के अंदर आ जाता था। सवाल उठता है कि क्या लोकतंत्र में मुख्यमंत्री और मंत्रियों के सरकारी आवास नाथी के बाड़े की तरह नहीं होने चाहिए? मंत्रियों को जो सरकारी बंगला मिलता है, उसका खर्च आयकर दाता ही उठता है। सरकारी बंगला लेने लायक तभी बनते हैं, जब जनता वोट देती है। डोटासरा भी विधायक हैं और सिविल लाइन वाला बंगला, तब मिला था, जब वे प्रदेश के शिक्षा मंत्री बने थे। जिस बंगले के मालिक डोटासरा हैं ही नहीं, उस पर इतना गुमान क्यों? डोटासरा अब मंत्री नहीं है, लेकिन फिर भी उन्हें मंत्री वाला बंगला मिला हुआ है। यह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मेहरबानी है। मुख्यमंत्री और मंत्रियों के सरकारी आवास तो नाथी के बाड़े यानी घर की तरह होने ही चाहिए। यदि डोटासरा और पुलिस को नाथी के बाड़े शब्द से चिढ़ है तो फिर पुलिस को सतर्कता बरतनी चाहिए थी। रीट परीक्षा को लेकर जब लगातार आंदोलन हो रहे हैं, तब मंत्रियों के बंगलों पर पुलिस को सतर्कता बरतनी चाहिए। जब तीन युवक दीवार पर नाथी का बाड़ा लिख रहे थे, तब पुलिस ने क्यों नहीं पकड़ा? लिखने का काम युवाओं ने दिन दहाड़े किया था। पुलिस अपनी विफलता को छिपाने के लिए भाजपा कार्यालय पहुंच गई। मौजूदा राजनीतिक माहौल में डोटासरा को भी संयम दिखाने की जरूरत है। रीट परीक्षा के समय डोटासरा ही स्कूली शिक्षा मंत्री थे। रीट का पेपर आउट हो जाने से प्रदेश के 16 लाख युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। डोटासरा माने या नहीं लेकिन युवाओं में सरकार के रवैये को लेकर नाराजगी है। शिक्षा मंत्री रहने के नाते डोटासरा अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं।