प्रधानमंत्री का श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी की 150वीं जयंती के अवसर पर वीडियो संदेश के जरिये संबोधन

अपरिग्रह केवल त्याग ही नहीं है बल्कि यह सभी प्रकार के लगाव को भी नियंत्रित करता है: प्रधानमंत्री

गुरु वल्लभ की याद में स्मारक सिक्का और डाक टिकट भी जारी किए गए

‘जियो और जीने दो’ की इस अवधारणा को अपनाकर आतंकवाद के प्रसार को रोका जा सकता है: श्री अर्जुन राम मेघवाल

 

संस्कृति मंत्रालय ने आजादी का अमृत महोत्सव के तहत श्री आत्म वल्लभ जैन स्मारक निधि के साथ मिलकर 26 अक्टूबर 2022 को दिल्‍ली के वल्लभ स्मारक जैन मंदिर तीर्थ में जैनाचार्य श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर के सार्ध जन्म शताब्दी महामहोत्सव (150वीं जयंती समारोह) मनाया।

इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी का एक वीडियो संदेश प्रसारित किया गया। केंद्रीय संस्कृति एवं संसदीय कार्य राज्य मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल ने मुख्य अतिथि के रुप में इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। सम्मानित अतिथियों ने शिलान्यास के लिए जैनाचार्य विजय वल्लभ सुरीश्वर जी सभागार सह बहुउद्देश्यीय हॉल का दौरा किया।

प्रधानमंत्री ने सभा को संबोधित करते हुए भारत में संत परंपरा के वाहकों और दुनिया भर में जैन धर्म मानने वालों को नमन किया। श्री मोदी ने अनेक संतों के साथ रहने और उनका आशीर्वाद लेने का अवसर मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त की। प्रधानमंत्री ने गुजरात के उस समय को याद किया जब उन्हें वडोदरा और छोटा उदयपुर के कांवट गांव में संतवाणी सुनने का अवसर मिला था।

आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी की 150वीं जयंती समारोह की शुरुआत को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने आचार्य जी महाराज की प्रतिमा का अनावरण करने का अवसर मिलने के बारे में बताया। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘आज एक बार फिर मैं तकनीक की मदद से आप संतों के बीच हूं।’ उन्होंने बताया कि जनता को आध्यात्मिक चेतना, आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर महाराज साहिब के जीवन दर्शन से जोड़ने के उद्देश्य से आज आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी को समर्पित एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का आज जारी किया गया है। प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि दो साल तक चलने वाले समारोह अब समाप्त हो रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि आस्था, आध्यात्मिकता, देशभक्ति एवं राष्ट्रीय शक्ति को बढ़ाने के लिए शुरू किया गया अभियान सराहनीय है।

दुनिया में वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य के बारे बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘आज दुनिया युद्ध, आतंक और हिंसा के संकट का सामना कर रही है और इस दुष्चक्र से बाहर निकलने के लिए प्रेरणा एवं प्रोत्साहन की तलाश में है।’ श्री मोदी ने कहा कि ऐसी स्थिति में मौजूदा भारत की ता‍कत से जुड़ी प्राचीन परंपराएं और दर्शन ही दुनिया के लिए एक बड़ी उम्मीद बन रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि आचार्य श्री विजय वल्लभ सुरीश्वर द्वारा दिखाया गया मार्ग और जैन गुरुओं की शिक्षा इन वैश्विक संकटों का समाधान है। श्री मोदी ने कहा, ‘आचार्य जी ने अहिंसा, एकांत एवं त्याग का जीवन जिया और इन विचारों के प्रति लोगों में विश्वास फैलाने का निरंतर प्रयास किया जो हम सब के लिए प्रेरणादायी है।’ उन्होंने कहा कि आचार्य जी का शांति एवं सद्भाव पर जोर विभाजन की भयावहता के दौरान भी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था। इस कारण आचार्य श्री को चातुर्मास का व्रत तोड़ना पड़ा। प्रधानमंत्री ने कहा कि महात्मा गांधी ने भी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान आचार्यों द्वारा निर्धारित ‘अपरिग्रह’ के मार्ग को अपनाया। उन्होंने कहा, ‘अपरिग्रह न केवल त्याग ही नहीं है बल्कि यह सभी प्रकार के लगाव को भी नियंत्रित करता है।’

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प्रधानमंत्री ने गच्छाधिपति जैनाचार्य श्री विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी का उल्लेख करते हुए कहा कि गुजरात ने देश को दो वल्लभ दिए हैं। उन्होंने कहा, ‘यह संयोग ही है कि आज आचार्य जी की 150वीं जयंती का समारोह पूरा हो रहा है और कुछ दिनों बाद हम सरदार पटेल की जयंती राष्ट्रीय एकता दिवस के तौर पर मनाने जा रहे हैं।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘स्टैच्यू ऑफ पीस’ संतों की सबसे बड़ी मूर्तियों में से एक है और ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है। श्री मोदी ने कहा, ‘ये केवल ऊंची-ऊंची मूर्तियां ही नहीं हैं, बल्कि ये एक भारत, श्रेष्ठ भारत का सबसे बड़ा प्रतीक भी हैं।’ दो वल्लभों के योगदान पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि सरदार साहब ने भारत को एकजुट किया था जो उस समय विभिन्‍न रियासतों में विभाजित था, जबकि आचार्य जी ने देश के विभिन्न हिस्सों की यात्रा की और भारत की एकता, अखंडता एवं संस्कृति को मजबूत किया।

 

धार्मिक परंपरा और स्वदेशी उत्पादों को एक साथ कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है, इस पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने आचार्य जी को उद्धृत किया और कहा, ‘किसी देश की समृद्धि उसकी आर्थिक समृद्धि पर निर्भर करती है और स्वदेशी उत्पादों को अपनाकर हम भारत की कला, संस्कृति और सभ्यता को बरकरार रख सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि आचार्य जी के कपड़े सफेद होते थे और हमेशा खादी से बने होते थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के अमृतकाल के दौरान स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का संदेश अत्यंत प्रासंगिक है। उन्होंने कहा, ‘यह आत्मनिर्भर भारत के लिए प्रगति का मंत्र है। इसलिए आचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वर जी से लेकर वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्री नित्यानंद सूरीश्वर जी तक यह मार्ग सुदृढ़ हुआ है। हमें इसे और मजबूत करना है।’

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इस अवसर पर संस्कृति राज्यमंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि सभी के प्रयासों से ही सिक्का और टिकट का विमोचन संभव हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि जैन दर्शन में ‘जियो और जीने दो’ की अवधारणा है और आज इस अवधारणा को अपनाकर आतंकवाद के प्रसार को रोका जा सकता है। उन्होंने मानव जाति के बीच करुणा फैलाने के लिए अहिंसा और सत्य के महत्व पर भी प्रकाश डाला।

यह कार्यक्रम गुरु वल्लभ जी के जीवन और उनकी शिक्षाओं स्मरणोत्सव है। उन्होंने एक जैन संत के सामान्य कठोर जीवन से बहुत आगे बढ़कर काम किया। उन्‍होंने शिक्षा एवं सामाजिक सुधार के जरिये जनता की भलाई करने के अलावा अपने शिष्यों को आध्यात्मिक ज्ञान के अलावा ज्वलंत मुद्दों एवं समस्याओं से निपटने के लिए समावेशी एवं सहभागी दृष्टिकोण अपनाने के लिए भी प्रेरित किया। उनका जन्‍म 1870 ई. में वडोदरा में श्री दीप चंद जी और श्रीमती इच्छा बाई के घर हुआ था। उन्हें जैन संतों के उपदेशों को सुनने में शांति और खुशी मिलती थी और इन झुकावों के कारण उन्हें 17 साल की उम्र में संत की उपाधि दी गई थी।

आजादी का अमृत महोत्सव के तहत आयोजित इस स्मरणोत्सव में जैन भारती मृगवती विद्यालय (जेएमवी) के छात्रों द्वारा सुंदर प्रस्‍तुति दी गई। इसके अलावा विजय वल्लभ सूरी समुदाय के वर्तमान गच्छधिपति जैनाचार्य श्री विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी एम. एस. के प्रेरक प्रवचन का चेन्नई से सीधा प्रसारण किया गया और श्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा गुरु वल्लभ पर स्मारक सिक्का एवं डाक टिकट जारी किए गए। दिन का समापन मुख्य अतिथि और सम्मानित अतिथियों के संबोधन और जेएमवी के छात्रों द्वारा ‘वल्लभ जी तरनहार रंग’ पर भांगड़ा प्रदर्शन के साथ हुआ।

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एमजी/एएम/एसकेसी