भारत और स्वीडन ने स्टॉकहोम में उद्योग संक्रांति वार्ता की मेजबानी की

भारत और स्वीडन ने अपनी संयुक्त पहल यानी लीडरशिप फॉर इंडस्ट्री ट्रांजिशन (लीडआईटी) के एक हिस्से के रूप में आज स्टॉकहोम में उद्योग संक्रांति वार्ता की मेजबानी की। लीडआईटी पहल उन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देती है जो वैश्विक जलवायु कार्य में प्रमुख हितधारक हैं और जिन्हें विशिष्ट हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

 

इस उच्च स्तरीय संवाद ने संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन ‘स्टॉकहोम + 50′: सभी की समृद्धि के लिए एक स्वस्थ धरती, हमारी जिम्मेदारी, हमारा अवसर’ में योगदान दिया है, जो 2 और 3 जून 2022 को हो रहा है और इसने सीओपी27 के लिए एजेंडा निर्धारित किया है।

 

इस कार्यक्रम की शुरुआत भारत के केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव और स्वीडन के जलवायु और पर्यावरण मंत्री सुश्री अन्निका स्ट्रैंडहॉल के संबोधन से हुई।

 

अपने उद्घाटन भाषण में केंद्रीय मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने 1972 में हुए मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की आगामी 50वीं वर्षगांठ के लिए दुनिया को बधाई दी और पर्यावरण के मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय चिंताओं में सबसे आगे रखा। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह 50 साल की सहयोगी कार्रवाई का जश्न मनाने का समय है और साथ ही इस बात पर आत्मनिरीक्षण करने का भी वक्त है कि अब तक क्या हासिल किया गया है और क्या किया जाना बाकी है। उन्होंने कहा कि “विकासशील देशों को केवल औद्योगिक ‘संक्रांति’ की ही नहीं बल्कि एक औद्योगिक पुनर्जागरण – उभरते उद्योगों की जरूरत है जो स्वच्छ वातावरण के साथ-साथ रोजगार और समृद्धि पैदा करेगा। विकसित देशों को अपने ऐतिहासिक अनुभवों के साथ नेट-जीरो और लो कार्बन उद्योग की ओर वैश्विक संक्रांति का नेतृत्व करना चाहिए।”

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इस पहल के नए सदस्यों जापान और दक्षिण अफ्रीका का स्वागत किया गया। इसके साथ ही देशों और कंपनियों को मिलाकर लीडआईटी की कुल सदस्यता 37 हो गई है। केंद्रीय मंत्री ने इस पहल के तहत हुई प्रगति के बारे में भी दर्शकों को ताजा जानकारी दी जिसमें ज्ञान साझा करने और संयुक्त प्रयासों में सुविधा के लिए खंडीय रोड मैपिंग, कार्यशालाएं और औद्योगिक क्षेत्र का दौरा शामिल है।

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आयोजन के दौरान, भारत ने 2022-23 के कार्यान्वयन के लिए प्राथमिकताओं पर गोलमेज वार्ता की अध्यक्षता की। इसमें सभी वक्ताओं ने जलवायु कार्रवाई में तेजी लाने की आवश्यकता पर जोर दिया। इसमें देशों और कंपनियों ने अपनी पहलों, सफलता की कहानियों और भविष्य के लिए बनाई गई योजनाओं को साझा किया। प्रतिभागियों ने कुछ बहुत ही विशिष्ट और मूल्यवान विचार साझा किए। इसमें यह महसूस किया गया कि घरेलू कार्यों को अगर अच्छी तरह से लागू किया जाए और उस पर संवाद को आगे बढ़ाया जाए जाए तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह मूल्यवान प्रेरणा हो सकती है। ऐसे मंचों के माध्यम से प्रयासों और विचारों के आदान-प्रदान में दुनिया को सही दिशा में ले जाने की क्षमता है। जलवायु को लेकर प्रतिबद्धताओं और प्रतिज्ञाओं को अब कार्रवाई में बदला जाना चाहिए जो जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से ही हो सकता है।

 

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