इस बार राजस्थान भाजपा में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की राह आसान नहीं।

इस बार राजस्थान भाजपा में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की राह आसान नहीं।

तो वसुंधरा समर्थक विधायकों, पूर्व विधायकों और नेताओं के टिकट भी कट जाएंगे।

केशोरायपाटन में शक्ति प्रदर्शन को लेकर राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह की कठोर टिप्पणी।

हमारे फेसबुक पेज https://www.facebook.com/GNewsPortalOfficial पर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और राजस्थान के प्रभारी अरुण सिंह का एक वीडियो देखा जा सकता है। यह वीडियो 9 मार्च को जयपुर में दिए बयान का है। सिंह ने यह बयान 8 मार्च को केशोरायपाटन में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के जन्मदिन पर राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन के संबंध में है। मालूम हो कि राजे के जन्मदिन पर भाजपा के 11 सांसद, 42 विधायकों, 109 पूर्व विधायकों तथा भाजपा के अनेक पदाधिकारियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी। अरुण सिंह ने कहा कि जन्म दिन बनाने पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन जन्म दिन को अन्य मकसद से मनाया जाए तो यह उचित नहीं माना जाएगा।

जन्मदिन के समारोह में भाजपा के जो नेता बयान दे रहे हैं उनके नाम नोट किए जा रहे हैं। कोई भी नेता संगठन से बड़ा नहीं है। पार्टी सर्वोपरि है। जो लोग विरोध कर रहे हैं उन्हें उचित समय पर जवाब दिया जाएगा। तब कोई नेता यह नहीं कहे कि मुझ से गलती हो गई है। पार्टी को नुकसान पहुंचाने वालों को कभी भी बर्दास्त नहीं किया जाएगा। अरुण सिंह ने कहा कि भाजपा के पास नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह जैसे नेताओं का सशक्त नेतृत्व है। ये नेता भी पार्टी को ही सर्वोपरि ही मानते हैं।

जानकार सूत्रों के अनुसार पिछले तीन सालों में संभवत: यह पहला अवसर होगा, जब वसुंधरा राजे के किसी कार्यक्रम को लेकर भाजपा के उच्च नेतृत्व ने इतनी कठोर टिप्पणी की है। इस टिप्पणी के कई मायने निकाले जा सकते हैं। एक तो पार्टी में अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। दूसरा यदि कोई अनुशासनहीनता या पार्टी लाइन से हटकर काम करेगा तो चुनाव में ऐसे सांसदों, विधायकों पूर्व विधायकों तथा नेताओं के टिकट भी कट सकते हैं। यहां यह खासतौर से उल्लेखनीय है कि 8 मार्च को राजस्थान विधानसभा का सत्र भी चल रहा था।

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भाजपा विधायक दल के नेता गुलाबचंद कटारिया ने सभी विधायकों को सदन में रहने की हिदायत दी थी, लेकिन 42 विधायक वसुंधरा राजे को जन्मदिन की बधाई देने के लिए बूंदी के केशोरायपाटन पहुंच गए। कहा जा सकता है कि इन विधायकों ने पार्टी लाइन से हट कर काम किया है। जिन विधायकों ने केशोरायपाटन में उपस्थिति दर्ज करवाई उनमे कैलाश मीणा, हरेंद्र निनामा, गोपीचंद मीणा, शंकर सिंह रावत, पूराराम, संतोष बाबरी, रामस्वरूप लांबा, कालीचरण सराफ, अशोक लाहोटी, अनिता भदेल, चंद्रकांत मेघवाल, विठ्ठल शंकर अवस्थी, नरेंद्र नागर, कालूलाल मेघवाल, कल्पना देवी, धर्मेन्द्र मोची, गुरदीप शाहपीनी, अर्जुन जीनगर, पुष्पेंद्र सिंह राणावत, शोभा चौहान, समाराम गरासिया, कैलाश मेघवाल, शोभा कुशवाह, निर्मल कुमावत, जबर सिंह सांखला, गोपीचंद मीणा, कन्हैया लाल चौधरी बिहारीलाल विश्नोई, जोराराम कुमावत, छगन सिंह राजपुरोहित, अविनाश गहलोत, गोपाल खंडेलवाल, गोविंद रानीपुरिया, संजय शर्मा, प्रताप सिंह सिंघवी आदि शामिल रहे।

राह आसान नहीं
वसुंधरा राजे वर्ष 2003 में पहली बार राजस्थान में भाजपा सरकार की मुख्यमंत्री बनी थी। 2008 का चुनाव राजे के मुख्यमंत्री रहते ही लड़ा गया, लेकिन भाजपा को सफलता नहीं मिली। कांग्रेस शासन में भाजपा संगठन के माध्यम से ही विपक्ष की भूमिका निभाई गई। लेकिन वर्ष 2012 में राजे फिर सक्रिय हुई और राष्ट्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाकर भाजपा की प्रदेशाध्यक्ष बनीं। तब के प्रचार अभियान में राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव ने प्रमुख भूमिका निभाई। दिसंबर 2013 में हुए चुनावों में भाजपा को 200 में से 160 सीटें मिली और कांग्रेस मात्र 21 सीटों पर सिमट गई। पांच साल बाद 2018 का चुनाव भी वसुंधरा राजे के चेहरे पर ही लड़ा गया, लेकिन भाजपा को सफलता नहीं मिली।
राजे चाहती है कि तीसरी बार भी उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर भाजपा की कमान सौंपी जाए। इसलिए जन्मदिन या अन्य अवसरों पर वे राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन करती रहती है। लेकिन राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह की 9 मार्च वाली टिप्पणी से प्रतीत होता है कि इस बार राजस्थान भाजपा में वसुंधरा राजे की राह आसान नहीं है। दिसंबर 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से ही राजे भाजपा में सक्रिय नहीं है। उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में बना रखा है, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में भी उनकी सक्रिय देखने को नहीं मिली है।
पिछले तीन वर्षों में जिन राज्यों में चुनाव हुए उनमें से किसी में भी राजे भाजपा का प्रचार करने नहीं गई। राजस्थान में कांग्रेस सरकार के विरुद्ध होने वाले आंदोलनों से भी राजे दूर ही रहती है। 2019 में हुए लोकसभा के चुनाव में भी राजे की अपेक्षित भूमिका नहीं देखी गई, लेकिन फिर भी भाजपा की सभी 25 सीटों पर जीत हुई। नागौर से आरएलपी के उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल को भी भाजपा ने समर्थन दिया था। यह सही है कि 2018 के चुनाव में पूरे प्रदेश में कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले में मात्र डेढ़ लाख वोट ज्यादा मिले थे। लेकिन भाजपा को 72 सीटें ही मिल पाईं।

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