एनएमसीजी ने वर्षा जल संचयन विषय पर मासिक वेबिनार श्रृंखला ‘इग्निटिंग यंग माइंड्स, रिजुवेनेटिंग रिवर्स’ के 9वें संस्करण का आयोजन किया

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने एपीएसी न्यूज नेटवर्क के सहयोग से मासिक वेबिनार श्रृंखला ‘इग्निटिंग यंग माइंड्स, रिजुवेनेटिंग रिवर्स’ के 9वें संस्करण का आयोजन किया। इस संस्करण का विषय ‘वर्षा जल संचयन’ था। इस सत्र की अध्यक्षता राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक श्री जी. अशोक कुमार ने की। वेबिनार के पैनल में डॉ. भानु प्रताप सिंह, कुलपति, महर्षि सूचना प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, लखनऊ; डॉ. वेंकटरमण चितिमिनी रेड्डी, कुलपति, के के विश्वविद्यालय, बिहार; डॉ. राजेश नैथानी, प्रो वाइस चांसलर, हिमालयन विश्वविद्यालय, देहरादून; डॉ. मंजुला जैन, एसोसिएट डीन अकादमिक, तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय, मुरादाबाद और श्री रामवीर तंवर, भारत के पॉन्डमैन और वर्षा जल संचयन विशेषज्ञ शामिल रहे।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक श्री जी. अशोक कुमार ने वर्षा जल संचयन के महत्व के बारे में युवा सोच को झकझोरने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारी चेतना में जल के सम्मान की परंपरा को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए।

एनएमसीजी के महानिदेशक श्री अशोक कुमार ने ‘कैच द रेन’ व्हेयर इट फॉल्स, व्हेन इट फॉल्स’ की टैगलाइन के साथ राष्ट्रीय जल मिशन के प्रबंध निदेशक के रूप में स्वयं द्वारा लागू किए गए ‘कैच द रेन’ अभियान को याद करते हुए कहा कि इसे 22 मार्च 2021 को विश्व जल दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किया गया था जिसमें देश भर के सरपंचों सहित एक करोड़ से अधिक लोगों ने वर्चुअल तरीके से भाग लिया था। यह शायद किसी भी जल संरक्षण अभियान का दुनिया का सबसे बड़ा शुभारम्भ कार्यक्रम था। उन्होंने बताया कि “देश में 47 लाख से अधिक वर्षा जल संचयन संरचनाओं का निर्माण किया गया और कई तालाबों की पहचान की गई और उन्हें पुनर्जीवित किया गया। उन्होंने कहा कि “अभियान के हिस्से के रूप में लगभग 500 जल केंद्र भी स्थापित किए गए थे।” श्री कुमार ने कहा कि हितधारकों को मानसून से पहले जलवायु परिस्थितियों और उप-मृदा स्तर के लिए उपयुक्त वर्षा जल संचयन संरचनाएं बनाने के लिए प्रेरित किया गया था।

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श्री अशोक कुमार ने वर्षा जल के संरक्षण और विरासत के संरक्षण की एकीकृत अवधारणा का उल्लेख करते हुए देश में पारंपरिक जल संचयन संरचनाओं के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि जल संचयन संरचनाएं वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने हैं और हम सभी के लिए एक टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करने के लिए इसे संरक्षित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि न केवल निर्माण, बल्कि वर्षा जल संचयन संरचनाओं का रखरखाव भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि नमामि गंगे मिशन के सफल क्रियान्वयन के लिए जल आंदोलन को जन आंदोलन बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी को जल संरक्षण का बीड़ा उठाने की तत्काल आवश्यकता है। इसके साथ ही उन्होंने प्रमुख शिक्षकों से यह सुनिश्चित करने की अपील की कि “उनके स्कूल परिसरों से पानी की एक बूंद भी बाहर न जाने पाए”। आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर सभी को बधाई देते हुए उन्होंने ‘हर घर तिरंगा’ के अनुरूप ‘हर घर वर्षा जल संचयन’ अभियान का आह्वान किया।

 

 

भारत के पॉन्डमैन के नाम से मशहूर हो चुके श्री रामवीर तनवीर ने वर्षा जल संचयन के संबंध में चुनौतियों और समाधानों के बारे में अपने विचार साझा किए। उन्होंने सीधे कचरा डंपिंग, अतिक्रमण और बहु-इनलेट के मुद्दों के बारे में बात की। एक प्रस्तुति के माध्यम से उन्होंने देश में विभिन्न तालाबों के स्थलों पर पहले और बाद  हुए बदलावों को चित्रित किया। उन्होंने कहा कि, ‘सेल्फीविथपॉन्ड’ और ‘नेचरवॉक’ जैसी पहलों ने तालाबों के संरक्षण और इस तरह जल संरक्षण के बारे में लोगों की जागरूकता को बढ़ाने में अद्भुत काम किया है।

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श्री रामवीर तनवीर ने जैव विविधता के महत्व पर जोर दिया और कहा कि प्राकृतिक जल निकाय और कृत्रिम जल निकाय के बीच मुख्य अंतर प्राकृतिक जल निकाय में जैव विविधता की स्वस्थ उपस्थिति है। उन्होंने कहा कि किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सामुदायिक भागीदारी महत्वपूर्ण है।

महर्षि सूचना प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, लखनऊ के कुलपति डॉ. भानु प्रताप सिंह ने जल संरक्षण के महत्व के बारे में बोलते हुए बताया कि तमिलनाडु देश का पहला राज्य है जिसने वर्षा जल संचयन को अनिवार्य बना दिया है। उन्होंने कहा कि जल और संसाधनों के नुकसान को रोकने के लिए हम सभी को अपने दैनिक जीवन में इनका विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करना चाहिए।

 

के के विश्वविद्यालय, बिहार के कुलपति डॉ. वी. चितिमिनी रेड्डी ने किसी भी बड़े पैमाने के अभियान के सफल कार्यान्वयन में सामुदायिक भागीदारी के महत्व के बारे में बात की। वहीं हिमालयन विश्वविद्यालय, देहरादून के प्रो वाइस चांसलर डॉ. राजेश नैथानी ने देश में शैक्षणिक संस्थानों की रैंकिंग में एक अनूठा पैरामीटर जोड़ने के विचार पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि संस्थानों की रैंकिंग में ‘सस्टेनेबिलिटी फैक्टर’ जोड़ा जाए जो कि संस्थान में पर्यावरण के संरक्षण, विशेष रूप से जल संरक्षण के अभ्यास को सुनिश्चित करेगा।

 

तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय, मुरादाबाद की एसोसिएट डीन अकादमिक डॉ. मंजुला जैन ने ‘जल बजट’ की अवधारणा पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि उनका विश्वविद्यालय जल संरक्षण की दिशा में इस अवधारणा को आगे बढ़ा रहा है। उन्होंने कहा कि पानी के संरक्षण के महान कार्य में हम सभी की अहम भूमिका है, और यह अपने आप में मानवता के अस्तित्व में भी अहम है! उन्होंने कहा कि खुशहाल जीवन के लिए मेहनत की बहुत जरूरत होती है।

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