भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई-53) में ‘फिल्म उद्योग में कॉर्पोरेट संस्कृति’ पर संवाद सत्र

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। भारतीय फिल्म उद्योग में कॉर्पोरेट संस्कृति के आगमन के पक्ष और विपक्ष दोनों हैं। एक ओर तो इसने उस वित्तीय संकट को सुलझा लिया है जिसका उद्योग पहले सामना कर रहा था I इसके अंतर्गत फिल्म का चाहे जो भी परिणाम रहा हो, इसने  कलाकारों और संचालको से निर्धारित एवं सहमत भुगतान सुनिश्चित और व्यक्तिगत निवेशकों  पर निर्भरता कम हुई। वहीं दूसरी ओर, कभी–कभी एक फिल्म निर्माता का जुनून कॉरपोरेट्स द्वारा निर्मित फिल्मों में दिखता ही नहीं और तब रचनात्मकता से समझौता किया जाता है। इसलिए रचनात्मकता और व्यवसाय का आदर्श रूप से सह-अस्तित्व होना ही चाहिए और सिनेमाई उत्कृष्टता हासिल करने के लिए विवेकपूर्ण संतुलन भी बनाए रखना चाहिए।

यह बात जाने-माने निर्देशक और निर्माता अनीस बज्मी ने आज गोवा में 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव फिल्म उद्योग में कॉर्पोरेट संस्कृति’ पर संवाद सत्र को संबोधित करते हुए कही ।

संवाद सत्र को संबोधित करते हुए अनीस ने कहा कि एक फिल्म निर्माता के लिए व्यवसाय बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके साथ ही रचनात्मकता से कभी समझौता नहीं करना चाहिए।  उन्होंने जोर देकर कहा कि “हर फिल्म हमेशा रचनात्मकता, जुनून और दृढ़ विश्वास पर आधारित होनी चाहिए। कॉरपोरेट्स द्वारा निर्मित कई सफल फिल्में हैं, लेकिन अधिक रचनात्मक लोगों को कॉर्पोरेट टीमों का हिस्सा होना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि रचनात्मकता व्यवसाय द्वारा निर्धारित नहीं है”।

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इस विषय पर बात करते हुए निर्देशक विकास बहल ने कहा कि फिल्म निर्माण मन लगा कर किया जाने वाला व्यवसाय है। कॉर्पोरेट संस्कृति को रचनात्मक फिल्म निर्माण की प्रक्रिया से मेल खाना चाहिए। उन्होंने कहा कि “कॉरपोरेट की एक्सेल शीट में ‘साहस’ नामक एक सॉफ्टवेयर डाला जाएगा।

पायरेसी के  विषय को उठाते हुए, विकास ने सरकार और कॉर्पोरेट दोनों से इस चुनौतीपूर्ण मुद्दे को हल करने के लिए हाथ मिलाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा “चोरी की समस्या से निपटने के लिए उचित कानून बनाया जाना चाहिए।”

निदेशक अभिषेक शर्मा ने कहा कि व्यवसायीकरण  ने उद्योग से ‘पैसे की सफाई’ सुनिश्चित की है। उन्होंने आगे कहा कि भारतीय फिल्म उद्योग को सच्चे अर्थों में ‘उद्योग’ कहलाने के लिए अधिक संगठित और औपचारिक होना चाहिए। “क्या हम वास्तव में एक जैविक उद्योग हैं? हमें आत्ममंथन करने की जरूरत है। हमें व्यक्तिगत लाभ और हानि को अलग रखकर एक साथ आने की जरूरत है और पूरे उद्योग के बारे में सोचने की जरूरत है”।

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निर्माता महावीर जैन ने कहा कि कॉरपोरेट अधिक पैसा लगा रहे हैं ताकि गुणवत्ता युक्त  फिल्में बनाई जा सकें। उन्होंने कहा “अधिक निवेशकों के आने से अधिक फिल्मों का निर्माण किया जा रहा है और इससे अधिकाधिक लोगों को रोजगार भी मिल रहा है”।

इस सत्र का संचालन विख्यात फिल्म व्यापार विश्लेषक कोमल नाहटा ने किया।

आईएफएफआई 53 में मास्टरक्लास और इन कन्वर्सेशन सत्रों के आयोजन सत्यजीत रे फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एसआरएफटीआई),राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी),  भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान (एफटीआईआई) और इंटरटेनमेंट सोसाइटी ऑफ़ गोवा (ईएसजी) द्वारा संयुक्त रूप से किए जा रहे हैं। फिल्म निर्माण के प्रत्येक पहलू में छात्रों और सिनेमा के प्रति उत्साही लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए इस वर्ष कुल 23 सत्रों का आयोजन किया जा रहा है जिसमें मास्टरक्लास और इन कन्वर्सेशन शामिल हैं।

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