राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने स्टॉकहोम विश्व जल सप्ताह 2021 के दूसरे दिन ‘ इन्टिग्रेटिड रिवर बेसिन मैनेजमेंट: स्टेकहोल्डर इंगेजमेंट’ पर सत्र को आयोजित किया

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने आज स्टॉकहोम विश्व जल सप्ताह 2021 के दूसरे दिन ‘ इन्टिग्रेटिड रिवर बेसिन मैनेजमेंट: स्टेकहोल्डर इंगेजमेंट’ पर मेलजोल बढ़ाने वाला सत्र आयोजित किया। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया की कार्यक्रम निदेशक,सुश्री सेजल वोरा ने सत्र के मॉडरेटर के रूप में सत्र के उद्देश्य अंतराष्ट्रीय स्तर पर आईआरबीएम के वास्तविक अनुभव को समझने और भारत में इसे कैसे लागू किया जाये इसके लिये इससे जुड़ी चुनौतियों और अपनाने के लिये जरूरी प्रक्रिया पर सविस्तार बातचीत, को सामने रखा।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक श्री राजीव रंजन मिश्रा ने आईआरबीएम को लेकर एनएमसीजी के दृष्टिकोण और भविष्य को लेकर सोच पर अपने विचार रखे। उन्होंने गंगा नदी के भारत में सबसे बड़ा नदी बेसिन होने और एक अंतरराष्ट्रीय बेसिन होने की मान्यता के महत्व के बारे में बात की। भारतीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा गंगा नदी के बेसिन में रह रहा है और नदी बेसिन विभिन्न तरीकों से सीधे मानव जीवन से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि नदी बेसिन में अनुभव की जाने वाली विभिन्न चुनौतियां बहुआयामी हैं क्योंकि इसमें पारिस्थितिकी, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था, खाद्य सुरक्षा आदि से संबंधित मुद्दे शामिल हैं।

महानिदेशक ने आईआईटी के साथ मिलकर गंगा नदी बेसिन प्रबंधन योजना विकसित करने के लिए एनएमसीजी द्वारा किये गए प्रयासों के बारे में जानकारी दी। योजना में प्रदूषण के मुद्दे को शामिल किया गया है और पानी की गुणवत्ता और मात्रा को बनाये रखने पर ध्यान केंद्रित रखने के समाधान सुझाए गए हैं। पर्यावरण में जल प्रवाह, वेटलैंड संरक्षण और विकास, वन्यजीव संरक्षण आदि से संबंधित अन्य चुनौतियां मुख्य बातें हैं जिन्हें जीआरबीएमपी के तहत शामिल किया गया है और एनएमसीजी के द्वारा सार्वजनिक-निजी भागीदारी  के साथ स्थायी तरीके से कदमों को उठाया जा रहा है।

अपनी समापन टिप्पणी में, उन्होंने गंगा नदी बेसिन में आईआरबीएम के सफल कार्यान्वयन के उद्देश्य से मत्स्य पालन, कृषि, वानिकी सहित अन्य हितधारकों की भागीदारी के महत्व पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि हमें अंतरराष्ट्रीय अनुभवों से सीखने और विशिष्टताओं और चुनौतियों को समझने की जरूरत है। इस बहुआयामी समस्या को हल करने के लिए एक सहयोगी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जहां संघीय और स्थानीय दोनों को सहयोग करने की आवश्यकता है।

सुश्री सेजल वोरा ने परियोजना प्रबंधक, जीआईजेड इंडिया, सुश्री बिर्गित वोगेल को यूरोपीय नदी बेसिन प्रबंधन दृष्टिकोण और इसे भारतीय संदर्भ में कैसे अपनाया जा सकता है, साझा करने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने समझाया कि हमें नदी बेसिन प्रणाली की जटिलता को दूर करने के लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें विभिन्न साधनों और शासन प्रणालियों के दृष्टिकोणों को एकीकृत किया गया हो। उन्होंने कहा कि साल 2000 से यूरोपीय संघ के जल ढांचे को लागू किया गया है और इस क्षेत्र में लगभग 200 नदी बेसिन प्रबंधन योजनाओं का मसौदा तैयार किया गया और उन्हें लागू किया गया है। उन्होंने तापी नदी बेसिन प्रबंधन के विकास के लिए जीआईजेड द्वारा प्रदान की गयी जानकारियों का उल्लेख किया।

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सुश्री बिर्गित वोगेल द्वारा विचार योग्य प्रमुख बिंदुओं को  समझाया गया, जिसमें बेसिन में शामिल सभी बातों के साथ बेसिन वाइड स्केल एसेसमेंट, आधार उपकरण के रूप में रिस्क मैनेजमेंट, उद्देश्यों पर नजर रखने के लिये रिवर बेसिन कमेटी, बेसिन में प्राथमिकता वाले सभी मामलों जैसे प्रदूषण, पानी की मात्रा और गुणवत्ता, जलविज्ञान प्रबंधन, बालू का खनन आदि पर ध्यान, उद्देश्यों में स्पष्टता आदि के साथ जोखिम प्रबंधन उपायों का विकास शामिल हैं। उन्होंने सभी संबंधित हितधारकों के साथ अन्य हितधारकों के जुड़ाव और संवाद पर ध्यान केंद्रित करने की टिप्पणी के साथ अपनी बात खत्म की।

मॉडरेटर ने डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के निदेशक, श्री सुरेश बाबू को रामगंगा बेसिन में आईआरबीएम हितधारकों की भागीदारी के महत्व पर बात करने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने यह समझाते हुए शुरुआत की कि रामगंगा गंगा नदी की प्रमुख सहायक नदी है और अधिकांश पानी का उपयोग कृषि उद्देश्यों के लिए किया जाता है। इसलिए रामगंगा बेसिन के करुला क्षेत्र में हितधारकों की भागीदारी के साथ जल प्रवाह बनाये रखने की अवधारणा को प्रमुख कदम के रूप में माना गया था। उनके द्वारा उल्लिखित प्रमुख बिंदुओं में संबद्ध विभागों जैसे बागवानी, वानिकी और अन्य के साथ एकीकरण; किसानों और युवाओं के साथ सहयोग और जल क्षेत्रों को लेकर जागरुकता,  युवाओं और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से प्रभावों का मूल्यांकन, आदि शामिल है। उन्होंने विस्तार से बताया कि इन पहल के कारण पानी को नदी प्रणाली में वापस लाया गया और इसके लिये मनरेगा और सिंचाई विभाग जैसे विभिन्न स्रोतों से धन प्राप्त हुआ। उन्होंने यह कहते हुए अपनी बात खत्म की कि स्थानीय समाधानों को परिभाषित करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए, विभिन्न विभागों का एकीकरण और उपायों का आकार व्यावहारिक होना महत्वपूर्ण हैं।

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पैनल सत्र का समापन करते हुए, महानिदेशक, एनएमसीजी ने गंगा बेसिन के लिए आईआरबीएम में शासन के दृष्टिकोण और आगे की राह पर अपनी बात रखी। उन्होंने सत्र के दौरान उल्लेख किये गये कदमों को बड़े पैमाने पर बढ़ाने की आवश्यकता जताई और ऐसा करने के लिए मुद्दों को प्राथमिकता देना और इसके मुताबिक विशेष नीतियों को विकसित करने को आईआरबीएम के मुख्य घटक के रूप में वर्णित किया। उन्होंने उल्लेख किया कि एनएमसीजी एक ऐसा संगठन है जो आईआरबीएम के सभी घटकों और कदमों को एक साथ लाने के लिये कार्य करता है, और इसे सीखने की प्रक्रिया के रूप में किया जाना चाहिये।

आईआईटी-कानपुर के प्रोफेसर विनोद तारे,  ने जिला स्तरीय सरकारी निकायों को सशक्त बनाकर निचले स्तर से शुरुआत करने वाले दृष्टिकोण को अपनाने और गंगा नदी बेसिन प्रबंधन में योगदान देने की वजह से छोटी नदियों के साथ पहल शुरू करने की बात कही। एएससीआई के प्रोफेसर एस. चारी वेदाला ने आईआरबीएम को पीढ़ियों के बीच के मुद्दे के नजरिये से भी देखने की बात कही। उन्होंने एनएमसीजी के भीतर और बाहर जानकारियों के प्रबंधन का विस्तार करने का सुझाव दिया क्योंकि वर्तमान में एनएमसीजी द्वारा किए गए विभिन्न प्रयास और पहल एक निश्चित स्तर तक सीमित हैं और शैक्षिक कार्यक्रम जिला और अन्य शासन स्तरों पर विकसित किये जा सकते हैं। आईएनटीएसीएच के श्री मनु भटनागर ने बेसिन आधारित आंकड़ों की संग्रह प्रणाली विकसित करने, आईआरबीएम के कदमों का समर्थन करने के लिए बजट-आधारित दृष्टिकोण और छोटी धाराओं पर आंकड़ों के विकास के बारे में बात की।

सत्र की समापन टिप्पणी के रूप में, एनएमसीजी के महानिदेशक ने आईआरबीएम को भौगोलिक, शासन संबंधी और पीढ़ियों के बीच के विषय के रूप में सीखने और भारत में आईआरबीएम प्रणाली की जानकारी और सुधार के महत्व को दोहराया। यह महत्वपूर्ण है कि इसे गंगा नदी तक सीमित न रखा जाए और भारत में अन्य नदी प्रणालियों के लिए आईआरबीएम की जानकारी विकसित की जाए।

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